Monday 30 June 2014

Received exiled to the moon the holy month of ramadan greetings


रमजानुल मुबारक के चांद का दीदार होते ही लोग खुशी से उछल पड़े। शाम मगरिब की नमाज के बाद बादलों की ओट से कुछ पलों के लिए चांद ने अपना मुखड़ा दिखाया। काफी लोग तो चांद की एक झलक देखने को तरस गए।

मुस्लिम बहुल इलाकों में आतिशबाजी से चांद का इस्तकबाल किया गया। शाम होते ही घरों की छतों, मैदानों में लोग जमा हो गए। सभी लोग आसमान की ओर टकटकी लगाए थे। छतों से महिलाएं व बच्चे एक दूसरे को अंगुली के इशारे से चांद देखने की पुष्टि कर रहे थे। लोगों ने शाम से ही रमजानुल मुबारक माह की मुबारकबाद देनी शुरू कर दी थी।

काफी लोग अपने करीबियों को संदेश भी भेज रहे थे। मोबाइल पर दुआएं भी आदान-प्रदान की जा रही थीं। इबादतों के इस माह के शुरु होने पर सभी लोग खुशी का इजहार कर रहे थे। काजी-ए-शहर मौलाना गुलाम यासीन ने रमजानुल मुबारक की मुबारक देते हुए लोगों से कहा कि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में गुजारें।

रमजानुल मुबारक का पवित्र माह आज रविवार को चांद रात से ही प्रारंभ हो गया। रमजानुल मुबारक को सब्र करने का भी महीना कहते हैं और सब्र का बदला जन्नत है। कोई दूसरा शख्स अगर रोजेदारों को बुराभला कहता है तो उससे कह दिया जाता है कि भाई हम रोजे से हैं। इस माह में नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर मिलता है और प्रत्येक फर्ज का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है। अल्लाह तआला रोजेदारों के पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है। जो लोग किसी रोजेदार को इफ्तार करवा देते हैं तो इस कारण उस व्यक्ति के तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं।

अल्लाह तआला फरमाता है कि मोमिन की रोजी बढ़ा दी जाती है। रमजानुल मुबारक एक दूसरे के हमदर्दी का भी महीना है। सब्र करने का महीना है रमजानुल मुबारक रमजान त्याग का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान किया है। इंसान गलतियों का पुतला है और अक्सर वह गलतियां करता है। इसलिए इस मौके को हाथ से जाने न दें और ईमानदारी से अल्लाह की इबादत करें। बुराइयों को त्यागने वाला ही सही मायनों में अल्लाह की इबादत करने का सच्चा हकदार है। रोजा आत्मा की शुद्धता का सबसे उत्तम साधन है। रोजेदार के मन में किसी तरह का गलत ख्याल तक नहीं होना चाहिए। रोजे का मतलब भूखे पेट रहकर अल्लाह की इबादत करना नहीं है, बल्कि सही मायनों में जीवन से बुराइयों को मिटाकर अच्छाइयों को अपनाना है, जिससे समाज में शांति और अमन कायम रहे। रोजा इफ्तार में हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मो के लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह समाज में भाईचारा बढ़ाने का एक जरिया है। अल्लाह भी अपने बंदों से यही उम्मीद करता है कि सब मिल-जुलकर रहें। सही मायनों में रमजान प्रेम का महीना है। अच्छा मुसलमान वही है जो अच्छा काम करे। दूसरे के दुख को अपना दुख समझे। रोजेदार के लिए जरूरी है कि वह अपने पड़ोसी का भी ध्यान रखे। एक साल की कुल कमाई के लाभ का ढाई फीसदी हिस्सा गरीबों में बांटे। बुराई त्यागें व अच्छाई अपनाएं मौलाना मोहम्मद मदनी

Source: Spiritual News & Rashifal 2014

Rosa june and 29 july thirtyfirst eid

रमजान-उल-मुबारक का पहला रोजा सोमवार से रखा जाएगा। इस बार तीस के चांद के हिसाब से माह-ए-मुबारक की पहली तारीख और 29 जुलाई को ईद-उल-फितर मनाया जाएगा। वरिष्ठ शिया धर्मगुरु मौलाना डॉ. कल्बे सादिक ने आज माह-ए-रमजान और ईद के चांद का एलान कर दिया है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष व मौलाना डॉ. सादिक ने देशवासियों को रमजान की मुबारकबाद दी और कहा कि वर्तमान समय में साइंस व तकनीक से चांद की स्थिति का पता लगाना आसान हो गया है। कोई भी व्यक्ति जब चाहे चांद की स्थिति की जानकारी हासिल कर सकता है। साथ ही मरकजी चांद कमेटी अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास व काजी-ए-शहर मुफ्ती इरफान मियां फरंगी महली ने मुस्लिम समुदाय से शनिवार को चांद देखने के बाद पुष्टि करने की अपील की।

Exit from the temple river

बिहार के गया डोभी के अमारूत गांव मे स्थित है कोल राजा का किला। कहते हैं इस किले के नीचे कोल राजाओं का इतिहास दफन है। ऐसा माना जाता है कि किले के अंदर राजा के साथ राज दरबार के कई महत्वपूर्ण जानकारी आज भी इस गढ़ के नीचे स्थित है।

किले(गढ़) के बारे मे लोग बताते हैं की इस जगह पर कोल राजा का दरबार था। जहां कई कुएं नुमा खजाना घर बनाया गया था। गढ़ राज का महल था। इस गढ़ से निकलने के कई रास्ते बनान गए थे। इसके अलावे दो गुफाएं बनायी गयी थी।

यहां निकलने वाली इस गुफा का एक मुंह कोठवारा का शिव मंदिर को, दूसरा मुंह लीलाजन नदी को खुलता है। इस गुफा के माध्यम से राजा और रानी लीलाजन नदी मे स्नान करने के बाद हरदिन कोठवारा शिवमंदिर मे पूजा अर्चना करते थे। इस प्रमाण को दर्शाता हुआ आज भी गुफा है। जिसका सतह काफी चिकना है।

आज के लोग इस बात से इंकार करते हैं की यह सतह का निर्माण किस सामग्री से किया गया होगा। चूंकि उस वक्त सिमेंट का आविष्कार नही हुआ था। कई बार विशालकाय सांप को देखे जाने के कारण गुफा के मुंह को ग्रामीण के द्वारा मिलजुल कर बंद करवा दिया गया।

राजाओं का साम्राज्य खत्म होने के बाद गढ़ पर वीरानी छा गई। बाद में मुगलशासक और गोरे का भी कब्जा रहा। राजा की संपत्ति लूट कर ले गये। बची हुई संपत्ति और इनसे जुड़े इतिहास आज भी गढ़ के नीचे मिलेंगे। विद्यालय के निर्माण के वक्त कई लोगो को यहां से कई महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुए।

लोगों द्वारा दबा लिया गया। सरकारी तंत्र तक नही पहुंच सका जिससे कोई इतिहास की बात अधिकारी कर सके। कई बार लोगों को कलश, चूड़ियां, स्तूप, खंडित मूर्तियां आदी आज तक मिल रहा है। ऐसा बताया जाता है की तथागत का बोधगया पुर्नआगमन के दौरान वे इस जगह पर रात्रि विश्राम भी किये थे।

इस गढ़ से लोग दूर-दूर तक का नजारे को देख सकते हैं। माना जाता है कि आज भी इसकी खुदाई से कई अहम जानकारी मिल सकेगी।

परन्तु यह संभव नही है चूंकि 1963 मे इस पर हाई स्कूल बना दिया गया। फिर भी इसके नीचे एक देश का बड़ा इतिहास का दफन हो गया। जो हमेशा की तरह एक अबुझ पहले बनकर रह जाएगी।


Will only be met by myself alone

जब आप एकांत में अपने निर्णयों और जीवन के बारे में विचारते हैं तो अधिक बेहतर तरीके से आगे बढ़ पाते हैं। अकेले में विचार हमारी दूसरों पर निर्भरता भी खत्म करता है। अधिकतर लोग अकेले हो जाने से डरते हैं। यही कारण है कि वे दोस्त बनाते हैं, प्रियजनों के बीच रहना चाहते हैं और हर समय किसी न किसी संस्था या गतिविधि के साथ जुड़े रहना चाहते हैं।

तमाम तरह की सोशल नेटवर्किंग साइट्स की बढ़ती लोकप्रियता इसी तरफ इशारा करती है। इन सोशल प्लेटफॉर्म्स के कारण व्यक्ति आधा घंटा भी खुद पर खर्च नहीं करता लेकिन जब हम अपने साथ समय बिताते हैं, खुद से बातचीत करते हैं तो हमारे जीवन में शांति और निर्णयों में अधिक सहजता दिखाई देती है। खुद के साथ कुछ वक्त रहने पर हमारे मन की व्यग्रता और हड़बड़ी भी खत्म होती है।

अक्सर अकेले रहने वाले व्यक्ति की सामाजिकता पर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन यह सच है कि जब हम अकेले होते हैं तभी हमें अपने व्यक्तित्व के आकलन का मौका मिलता है। अपनी जिंदगी की दिशा तय करने का यही सबसे उपयुक्त समय होता है। खुद के साथ बिताए जाने वाले लम्हें अपने रिश्तों, अपनी खूबियों और अपने जीवन के बड़े निर्णयों के तमाम पहलुओं पर सोचने का मौका देते हैं। आइए देखें खुद के साथ बिताए जाने वाले लम्हों का हासिल क्या है।

सरलता से परिचय

इस समय जीवन बहुत आपाधापी और व्यस्तता के बीच है। ऐसे में हमने खुद को हम यह करना चाहते हैं, हमें यह करना चाहिए, हमें यह करने की जरूरत है और हमें यह नहीं करना चाहिए, जैसे बहुत सारे प्रश्नों के बीच खड़ा कर लिया है। इस तरह के तमाम प्रश्न हमारे भीतर एक खिंचाव पैदा करते हैं।

हम पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं। माना कि हमारे जीवन में बहुत सारी चीजें चल रही हैं लेकिन हमें थोड़ा रुककर यह देखने की जरूरत तो है कि कहीं हम सिर्फ प्रतियोगिता को ही तो नहीं जीने लगे हैं। प्रतियोगिता से मुक्ति के लिए और अपनी खुशी को बेहतर तरीके से समझने के लिए अकेलापन बहुत मददगार होता है। वह बताता है कि आपकी सही जरूरतें क्या हैं।

सूचनाओं से मुक्ति

इन दिनों जिस तरह का जीवन हमारे आसपास है उसमें लोगों के दिमाग में बहुत सारी सूचनाएं और चीजें भरी रहती हैं। याद रखिए कि हम सिर्फ सूचनाएं इकट्ठा ही नहीं करते हैं बल्कि उन सूचनाओं के आधार पर प्रतिक्रिया की कोशिशें भी करते हैं। लगातार सूचनाओं के बीच आप प्रतिक्रिया ही व्यक्त करते रह जाते हैं और अपने मन की बात नहीं सुन पाते हैं। समय-समय पर इन सूचनाओं से दूर होने की जरूरत होती है। जब हम एकांत में समय बिताते हैं तो बहुत सारी नई सूचनाओं से भी बच जाते हैं और इनके प्रभाव से दूर होकर चीजों को देख पाते हैं।

सटीक निर्णय की ओर

दुनिया को देखने की हमारी दृष्टि अक्सर निकट के लोगों द्वारा प्रभावित होती है। हमारे मित्र, रिश्तेदार, शिक्षक और माता-पिता उनके अनुभवों के द्वारा हमारे हमारे निर्णयों और जरूरतों को प्रभावित करते हैं इसलिए यह जरूरी है कि हम अकेले में कुछ समय बिताकर अपनी सही और असल आवश्यकताओं से परिचित हों। जिस भी दिशा में हम आगे

बढ़ने जा रहे हों उसके बारे में अपने दिल पर हाथ रखकर पूछें कि क्या यही हम चाहते हैं। इस उत्तर के साथ आगे बढ़ना आपके मन की दुविधा खत्म कर देगा।

चिंताओं से मुक्ति

जब हमारे विचारों और हमारे आगे बढ़ने की दिशा के बीच कोई दुविधा नहीं होती है तो हमारे मन में किसी भी तरह की चिंता नहीं होगी। यह तभी होगा जब हम अकेले रहकर अपने विचार और दिशा के बीच एकरूपता बनाएं। जब तक हम एकांत में अपने बारे में और अपने निर्णयों के बारे में ठीक से नहीं सोचेंगे तो मन कई तरह की चिंताओं से भरा रहेगा। चिंताओं से मुक्ति के लिए खुद के साथ समय बिताना बहुत ही जरूरी है।

खत्म होती निर्भरता

बहुत से लोग इस कारण एकांत में समय नहीं बिताते क्योंकि उन्हें दूसरों का साथ अच्छा लगता है, उनके साथ बातचीत करना अच्छा लगता है। इससे उनके निर्णयों को दूसरों से सहारा मिलता है। यह मानव स्वभाव है। दूसरों के साथ बिताए जाने वाले लम्हों के कारण हमारी खुशी उन पर निर्भर हो जाती है।

हम ऐसे किसी साथ का उपयोग अपनी समस्याओं से दूर जाने के लिए करते हैं। हम खुद से दूर जाने के लिए भी दूसरों का सहारा लेते हैं। लेकिन यह समझना होगा कि तब हमारे निर्णय पूरी तरह अपने नहीं होते और हमारी दूसरों पर निर्भरता बढ़ती जाती है। एकांत में अपने निर्णयों पर विचार हमारी निर्भरता को खत्म करता है।

सक्रियता में बढ़ोतरी

अक्सर हम अपनी जिंदगी में खालीपन को भरने के लिए तरह-तरह की गतिविधियों में शामिल होते रहते हैं। कभी गौर कीजिएगा कि जब आप कुछ नहीं कर रहे हैं तब भी कुछ तो आप कर ही रहे होते हैं। रोजमर्रा के जीवन में अतिरिक्त गतिविधियों को हटाने की जरूरत है। गैर-जरूरी चीजों को अगर हम कम करते रहेंगे तो हमारी सक्रियता में बढ़ोतरी होगी। तब हम पाएंगे कि हमारे पास अधिक समय है और अधिक ऊर्जा भी।

छोटे पलों का आनंद

अक्सर प्रतियोगिता में बने रहने पर हम अपने आसपास की बहुत छोटी चीजों का आनंद नहीं ले पाते हैं, इसलिए जब अकेले हों तो उन चीजों के बारे में सोचें। उन छोटी चीजों के बारे में जो आपको सहज उपलब्ध हैं और जो आपके ध्यान से दूर रहती हैं। इन चीजों पर ध्यान देने पर आप पाएंगे कि जीवन कितने रूपों में बंटा हुआ है और हर रूप आपको विस्मित करने की क्षमता से परिपूर्ण है।

प्राथमिकता में मदद

जब हम एकांत तलाश पाते हैं तो यह भी देख पाते हैं कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं और उन प्राथमिकताओं की दिशा में आगे बढ़ने के लिए किन-किन प्रयासों की जरूरत है। एकांत में हम शांत मन से अपनी प्राथमिकताओं के बारे में सोच पाते हैं।

ऐसा करते हुए आप जीवन के तमाम पक्षों को देखते हुए प्राथमिकताएं तय करते हैं। हमारा लक्ष्य तब सफल ही नहीं होता बल्कि अपने लिए सुकून और सहजता की तलाश भी होता है।

Measure to remove negativity

सामाजिक जीवन में अपने आसपास के लोगों का बुरा व्यवहार अक्सर हमें दुखी और निराश करता है लेकिन इस तरह की स्थितियों को खुद पर हावी न होने दें बल्कि उनसे पूरी सकारात्मकता के साथ निपटें।

दफ्तर से लेकर आस-पड़ोस तक हम खुद को ऐसे लोगों और ऐसे व्यवहार के बीच पाते हैं जो हमारे भीतर असंतुलन और असहजता पैदा करता है। जो हमारे भीतर की शांति में खलल पैदा करता है।

दूसरों का कटुतापूर्ण व्यवहार हालांकि हमें बहुत तकलीफ पहुंचाता है लेकिन हम उनके तौर-तरीकों को बदल नहीं सकते। जिस तरह हम चाहते हैं उस तरह तो कतई नहीं। अपनी शांति के लिए नकारात्मकता से निपटने का तरीके खोजना ही आपके पास विकल्प हो सकता है। सकारात्मक होकर ही आप इस नकारात्मकता को जीत सकते हैं।

छींटाकशी से दूर की राह

अगर आप किसी ऐसी जगह हैं जहां लोग नकारात्मक टिप्पणियों या छींटाकशी में रस ले रहे हों या फिर दूसरों का उपहास कर रहे हों तो ऐसी जगह और स्थिति से खुद को बाहर निकालना ही ठीक है। जैसे ही आपको भान हो कि इस तरह की बातचीत आपके स्वभाव से मेल नहीं खाती है तुरंत उन लोगों के बीच से निकल जाना चाहिए। अगर किसी कारण से आप ऐसी जगह से नहीं निकल पा रहे हैं तो भी इस तरह की बातचीत में हिस्सा लेने से बचें, प्रतिक्रिया व्यक्त करने से दूरी बनाएं।

आलोचना से दूरी बनाएं

नकारात्मक टिप्पणियों, आलोचनात्मक दृष्टिकोण को व्यक्तिगत रूप से न लें। दूसरों की हताशा का असर खुद पर न पड़ने दें। दूसरों की हताशा और गुस्से पर अगर आप कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे तो उसका फायदा आपको अपने व्यक्तित्व में दिखाई देगा। अक्सर आप दूसरों के साथ उलझने पर अपने मन को खराब कर बैठते हैं। प्रयास के साथ इससे बचें।

सकारात्मकता पर ध्यान दें

हर दिन अपने जीवन की तीन सकारात्मक बातों पर ध्यान दें। उन लोगों को याद करें जिन्होंने आपके दिन को अच्छा बनाया। उन लोगों को भूल जाएं जिनके साथ आपकी झड़प हुई हो। अपने दिन की बुरी घटनाओं के प्रभाव से अपनी शाम को खराब न होने दें। इस तरह आप अपने दिन को बेहतर तरीके से पूरा कर पाएंगे।

ज्यादा अपेक्षाओं से बचें

अपने मन मुताबिक दूसरों से काम की अपेक्षा रखना आपको निराश ही करेगा इसलिए लोगों से न्यूनतम अपेक्षाएं रखें। उन्हें बताएं भी नहीं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। जब आप उन्हें यह बताते हैं कि आपकी अपेक्षाएं क्या हैं और फिर भी चीजें ठीक नहीं होती तो आपको ज्यादा निराशा होती है और इसलिए सामाजिक जीवन में लोगों को ऐसे निर्देश देने से बचें। सामान्य तौर पर अगर आप उन्हें कोई बात समझा सकते हैं तो बस उतना ही प्रयास करें।

प्रतिक्रियाओं पर गंभीर न हों

अक्सर आपके प्रयासों को लेकर लोग नकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं और ऐसे में उन प्रतिक्रियाओं को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना बहुत जरूरी है। नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को आपकी राह की बाधा न बनने दें। हमेशा ऐसे लोगों की बातों को भुलाने के लिए खुद को किसी सकारात्मक गतिविधि के साथ जोड़ें। बेहतर होगा कि ऐसे लोगों की बातों को अपने अनुरूप दिशा में मोड़ लें।

सफलता की खुशी

दिनभर में जो छोटी सफलताएं आपने प्राप्त की हैं उनका जश्न मनाएं। अपनी कमियों को लेकर बहुत ज्यादा सख्त नजरिया अपनाने से बचें। दूसरों के प्रति भी अधिक आलोचना भरा नजरिया न रखें और उनके छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना करें। इस तरह आप उन्हें प्रेरित कर पाएंगे और खुद भी अच्छा महसूस करेंगे। इस तरह आप बेहतर टीम भी बना पाएंगे।

नकारात्मकता से बचें

जब भी कोई खराब स्थिति बनती है तो हमारे सामने दो विकल्प होते हैं कि हम उस पर प्रतिक्रिया दें या फिर चुप रहें। जो हो चुका है उस पर बात करके वातावरण को अधिक कटु बनाने के बजाय भविष्य के लिए बेहतर योजनाओं के बारे में सोचना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। निराशा के बजाय ऐसे समय सकारात्मक बातें करना टीम को प्रेरित करेगा।


Go beyond the mind highest happiness

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, मन में ऊहापोह होती है, तो समझें कि चेतना कैद हो गई है, उस पर ताला लग गया है। इस कैद से परे जाने पर ही आनंद मिल सकता है।

जीवन जीने के दो ढंग हैं- एक ढंग है चिंतन का, विचार का और दूसरा है अनुभूति का, अनुभव का। अधिकतर लोगों पर मन का दबाव होता है। वे सोच-विचार में उलझ जाते हैं। वे सोचते ज्यादा, जीते कम हैं।

क्योंकि वे सोचने को ही जीवन समझ लेते हैं। बौद्धिकता को ही अनुभव समझ लेते हैं। वे धर्मग्रंथ और दर्शन पढ़ते हैं और समझते हैं कि उन्हें सारा ज्ञान उपलब्ध हो जाएगा। सब सिद्धांतों की जानकारी उन्हें यह भ्रांति भी देती है कि वे ब्रह्मज्ञानी हो गए हैं। इसी भ्रांति के कारण वे दूसरों के साथ ज्ञान बांटने लगते हैं।

उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि यह सब ज्ञान उधार का है, बासी है। इस ज्ञान से उनका अपना कोई रूपांतरण नहीं हुआ है। उधार के ज्ञान से किसी का भी जीवन आलोकित नहीं हो सकता है बल्कि यह डर रहता है कि कहीं अहंकार न घेर ले। वे अपने अहं की कैद में फंस जाते हैं।

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, ऊहापोह होती है, तो यह समझें कि चेतना कैद हो गई है, उस पर ताला लग गया है। यह एक ऐसी कैद है जिसके जेलर हम स्वयं ही हैं। ऐसे में छटपटाहट की स्थिति निर्मित होती है।

ऐसे में व्यक्ति धर्मग्रंथ पढ़ता है, दर्शन प्रणालियों पर विचार करता है लेकिन जो कुछ भी करता है वह मन के दायरे में ही होता है, उससे मन के कैदखाने की दीवारें टूटती नहीं, बल्कि और मजबूत होती जाती हैं। इनसे उसे न कोई समाधान मिलता है और न कोई मुक्ति, बल्कि निराशा-हताशा, अतृप्ति और अवसाद बढ़ता जाता है।

प्रश्न यही है कि इस ताले को कैसे खोला जाए? तो अनुभवी व्यक्तियों का निष्कर्ष है कि ध्यान ही वह कुंजी है जिससे यह ताला खुलता है और समाधि ही समाधान है।

अपने मन के पार सोचने या जाने का प्रयास ही सारी चीजों से मुक्त करता है। जापान में जेन साधक साधना करते हैं। अपनी विधियों से वे नो-माइंड, अ-मन की अनुभूति करते हैं। उनमें से एक विधि है श्वास को शांत करना, उसकी गति को धीमा, और धीमा करते जाना।

साधारणत: प्रत्येक मनुष्य एक मिनट में कोई पंद्रह से बीस बार श्वास लेता है। जेन साधक अपने श्वास पर ध्यान करता है, श्वास की गति धीरे-धीरे शांत होती जाती है। वह इतनी धीमी हो जाती है कि एक मिनट में चार-पांच श्वास तक पहुंच जाती है। उस बिंदु पर आकर मन के पार जाने की पूर्व तैयारी होती है, क्योंकि तब विचार भी शांत होने लगते हैं। श्वास और विचार-प्रवाह का एक अंतर्संबंध है।

इधर श्वास शांत होती है और उधर विचार शांत होने लगते हैं। जब आप भय, क्रोध, वासना या किसी प्रकार की उत्तेजना में होते हैं उस समय गौर करें कि आपकी श्वास भी तेज गति से चलने लगती है और विचारों का ओलिंपिक शुरू हो जाता है। आप आपा खो बैठते हैं।

आत्मासिकुड जाती है और विक्षिप्तता आपकोपकड लेती है। आप बुरी तरह विचारों के जाल मेंजकडे जाते हैं। श्वास का अस्त-व्यस्त होना आपके भीतर विचारों का महाभारत खड़ा कर देता है। इसलिए जेन साधक अपने विचारों के साथ संघर्ष नहीं करते और न ही उन्हें नियंत्रित करते हैं। वे अपनी श्वास की ओर उन्मुख होते हैं और उसे साधते हैं। निश्चित ही यह अनुभूति का आयाम है।

आप अपने विचारों से उलझते नहीं, उनके पार चले जाते हैं। यह घड़ी है आत्मज्ञान की, जहां सब उधार ज्ञान और मन का पूरा जाल पीछे छूट जाता है। ओशो इसे ही साक्षीभाव कहते हैं। इस साक्षीभाव को पाना ही आनंद है, वही धन्यता है। इस अवस्था में सब द्वंद्व मिट जाते हैं।


What irritated by elves


हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां लोग सभी अप्सराओं को मार देना चाहते हैं। हमने उन तपस्वियों का गुणगान किया है जो किसी भी तरह के बहलाव, उकसावे, आकर्षण, आनंद, सम्मोहन को खारिज कर दें। सेंसरशिप के मूल में भी यही है।

पुराणों में वर्णन आता है कि जब भी कोई पुरुष तपस्या के लिए अपनी आंखें मूंदता है तब एक अप्सरा प्रकट होती है और उसके सम्मुख नृत्य करके उसे बाध्य करती है कि वह अपनी आंखें खोल दे। तपस्या का लक्ष्य संसार से दूर जाना, मस्तिष्क को प्रज्वलित करना और दिमाग में विचार अग्नि पैदा करने, या उसे तपाने से है जिससे कि सारा अज्ञान जल जाए और उसके प्रकाश में विवेक प्रकट हो। सफलता किसी मनुष्य को प्रज्ञावान मनुष्य यानी तपस्वी का रूप दे सकती है और यहां प्रज्ञा का अर्थ भीतरी बौद्धिक अग्नि से है जो बिना किसी ईंधन के जलती है।

लेकिन तपस्वी के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अप्सरा होगी जिसे वस्तुत: जल कन्या के रूप में चित्रित किया गया है, यहां अप्सा शब्द संस्कृत से आया है जिसका अर्थ होता है जल। वह तप से प्रज्वलित अग्नि को बुझा देगी और अपने रूप सौंदर्य के साथ उसका ध्यान भंग करते हुए उसे आंखें खोलने पर विवश कर देगी। अपनी मानसिक अवस्था पर नियंत्रण खत्म होने की इस अवस्था को दृश्य रूप में 'वीर्य प्रस्फुटन" के साथ दर्शाया गया है।

कोई फेसबुक अपडेट या ट्वीट एक अप्सरा की तरह ही है जो हमें किसी भी तरह की प्रतिक्रिया के लिए उकसाते हैं। हम उसे लाइक, डिस्लाइक, फेवरिट, रिट्वीट, फॉरवर्ड और डिलीट करना चाहते हैं। कुछ तपस्वियों के लिए इसका अर्थ यही है कि अपनी हॉकी स्टिक बाहर निकालना और किसी को पीटकर मृत्यु तक पहुंचा देना।

इस संदर्भ की कथा आती है कि जब इच्छाओं के देव, अप्सरों के प्रिय सखा कामदेव ने दुनिया के श्रेष्ठतम तपस्वी शिव की इंद्रियों को उकसाने का प्रयास किया, तो शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला और उसे भस्म कर दिया। महादेव ने इस तरह फुसलाने की कोशिश को ठीक नहीं माना।

लेकिन तब देवी शक्ति कामाख्या या कामाक्षी के रूप में अवतरित हुईं तो कामदेव पुनर्जीवित हुए। देवी ने ईख से बना कामदेव का धनुष और पुष्पों से बने उनके तीर उठाए और शिव के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। लेकिन यह हिंसक युद्ध नहीं था। यह आकर्षण और प्रेम का युद्ध था। उन्होंने तीव्र वेदना से भरे शिव से आंखें खोल उनकी ओर देखने की प्रार्थना की।

देवी की महत्ता है, कामदेव का महत्व है, अप्सरा की महत्ता है और जिस संसार से तपस्वी दूर जाते हैं उसका भी अपना महत्व है। इनके बिना विवेक हो ही नहीं सकता। शिव ने यह समझा और शंकर रूप में रूपायित हुए और शक्ति के पति बने। उन्होंने शक्ति को इस तरह धारण किया कि वह उनके शरीर का आधा भाग भी बन गईं।

हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां लोग सभी अप्सराओं को मार देना चाहते हैं। हमने उन तपस्वियों का गुणगान किया है जो किसी भी तरह के बहलाव, उकसावे, आकर्षण, आनंद, सम्मोहन को खारिज कर दें। सेंसरशिप के मूल में भी यही है।

आज प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियां गोरेपन और सौंदर्य उत्पाद बेचती हैं। आज के समय में राष्ट्रीयता का दम भरने वाली भारतीय कंपनियां महत्वाकांक्षी गृहिणियों और बच्चों को हर चीज बेचने के लिए गोरी चमड़ी वाली मॉडल का उपयोग करती हैं जो अमेरिकन उच्चारण वाली अंग्रेजी बोल सकें।

हम सेंसरशिप की तीसरी आंख द्वारा उन्हें रोक सकते हैं। या हम बुद्धिजीवी तपस्वी बन सकते हैं जो समझते हैं कि अप्सरा हमारी प्राकृतिक वृत्तियों को उजागर करती है। वह हमारी कमजोरियों का दर्पण होती है। वह बताती है कि हमें किन पक्षों पर काम करने की जरूरत है, हमारा आत्म सम्मान और आत्ममूल्य किस कमजोर धरातल पर खड़ा है। असल में वह हमारी शिक्षक है। यही वजह है कि विष्णु ने मोहिनी रूप धरा और सभी को मोहित किया। बहलाकर वह हमें बाध्य करती है कि हम अपने अवचेतन की भूख को समझें।


Friday 27 June 2014

28 will not start Amarnath Yatra from Pahalgam

पहलगाम रूट से बाबा अमरनाथ यात्रा को फिलहाल तीन दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है। इस रूट पर भारी बर्फ जमा होने के कारण यात्रा निर्धारित तिथि 28 जून से शुरू नहीं होगी। इसका फैसला राज्यपाल एनएन वोहरा की अध्यक्षता में बुधवार को हुई उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया। अलबत्ता, बालटाल रूट से यात्रा 28 जून से ही शुरू हो जाएगी।

राज्यपाल और श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एनएन वोहरा ने पवित्र गुफा स्थल, पंजतरणी यात्रा कैंप, शेषनाग यात्रा कैंप का दौरा किया। पंजतरणी-महागुनस टाप-शेषनाग रूट पर डेढ़ फीट तक बर्फ जमा है। राज्यपाल ने बर्फ जमा होने से उत्पन्न स्थिति का जायजा लेने के बाद वहां पर सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ व अन्य अधिकारियों से बातचीत भी की।

यात्रा मार्ग का दौरा करने के बाद राज्यपाल ने डीजीपी के राजेंद्रा, डिवीजनल कमिश्नर कश्मीर शैलेंद्र कुमार, आइजी कश्मीर अब्दुल गनी मीर, श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के सीईओ आरके गुप्ता व अन्य अधिकारियों के साथ बैठक की। डीजीपी और आइजी कश्मीर ने भी शेषनाग तक यात्रा मार्ग का जायजा लिया। बैठक में व्यापक विचार-विमर्श के बाद फैसला किया गया कि पहलगाम यात्रा मार्ग पर भारी बर्फ जमा होने के कारण यात्रा निर्धारित तिथि 28 जून से शुरू करना मुश्किल है। राज्यपाल ने आदेश दिए कि बर्फ हटाने के काम में तेजी लाएं और नियमित तौर पर काम की प्रगति का जायजा लिया जाए।

फैसला किया गया कि जिन श्रद्धालुओं का पहलगाम रूट से यात्रा पंजीकरण 28 जून से 30 जून के बीच है, वे अगर चाहे तो बालटाल रूट से यात्रा कर सकते हैं। यह भी फैसला किया गया कि 30 जून दोपहर बाद राज्यपाल फिर से स्थिति का जायजा लेंगे कि क्या इस मार्ग से एक जुलाई से यात्रा शुरू की जा सकती है या नहीं।

Bomb - bomb filled with naive Yatri Niwas

शहर के भगवती नगर स्थित यात्री निवास बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठा है। पूरे साल वीरान रहने वाला यात्री निवास वीरवार दोपहर से ही श्रद्धालुओं से गुलजार हो गया। देर शाम तक यात्री निवास श्रद्धालुओं से भर गया।

शुक्रवार सुबह श्रीनगर के बालटाल के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था रवाना हुआ। इस जत्थे में रवाना होने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। वे पूरे उत्साह के साथ बाबा भोलेनाथ के जयकारे लगा रहे थे और खुद को धन्य महसूस कर रहे थे। वहीं, यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री निवास में पूछताछ केंद्र के अलावा बस बुकिंग काउंटर भी बनाए गए हैं, जबकि वहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रशासन की ओर से मुहैया करवाई गई हैं। यात्रियों को कोई परेशानी न हो, इसके लिए पर्यटन विभाग के आला अधिकारी यात्री निवास में खुद मोर्चा संभाले हुए थे।

वहीं, यात्री निवास की सुरक्षा में पुलिस के अलावा सीआरपीएफ की विशेष बटालियनों को तैनात किया गया है। डीआईजी शकील बेग ने भी सुरक्षा का जायजा लेने के लिए यात्री निवास का दौरा किया। उन्होंने श्रद्धालुओं से भी बात की।

शकील बेग ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा पुलिस की जिम्मेदारी है। जम्मू-कश्मीर पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियां मिलकर यात्रा की सुरक्षा संभाले हुए है। वहीं, बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए देश के दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं का कहना है कि वे बेखौफ होकर यात्रा के लिए आए हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि बाबा भोलेनाथ उनकी यात्रा सुखमय बनाएंगे।

देर शाम तक सूचना न मिलने से खफा थे श्रद्धालु- पहलगाम मार्ग से यात्रा रोके जाने के बाद उन श्रद्धालुओं को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा, जिन्होंने इस मार्ग से यात्रा पंजीकरण करवाया था। यात्री निवास पहुंचे उन यात्रियों को देर शाम तक इस बात की जानकारी भी मुहैया नहीं करवाई गई कि क्या वे शुक्रवार को जम्मू से रवाना होंगे या नहीं। यात्रियों में इस बात को लेकर काफी रोष था और वे प्रशासन पर बदइंतजामी के आरोप लगा रहे थे। वेस्ट बंगाल से आए सैबाल घोष ने बताया कि वे सुबह से इस बात की जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें बालटाल से भेजा जाएगा या नहीं, लेकिन यात्री निवास में उन्हें कोई कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं।

वहीं, राजस्थान से आए अन्य श्रद्धालु मनोज ने बताया कि वे बस टिकट लेने के लिए काउंटर पर गए थे, लेकिन उन्हें यह कह कर टिकट नहीं दिया गया कि अभी प्रशासन ने पहलगाम से जाने वाले श्रद्धालुओं के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं की है। श्रद्धालुओं में इस बात को लेकर काफी रोष व्याप्त था कि पूछताछ केंद्र में तैनात कर्मी से भी उन्हें सही जानकारी हासिल नहीं हो रही है और वे यात्रा को लेकर असमंजस में है।

वहीं, जब पर्यटन विभाग के निदेशक सौजन्य शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जिन श्रद्धालुओं का शुक्रवार को पंजीकरण है, उन्हें हर हाल में जम्मू से बालटाल के लिए रवाना किया गया। और फिर चाहे उस श्रद्धालु का पंजीकरण पहलगाम से ही क्यों न हो। उन्होंने श्रद्धालुओं से मुलाकात कर उन्हें यात्रा पर रवाना करने का भरोसा दिलाया जिसके बाद श्रद्धालुओं ने राहत की सांस ली।

Shravani Mela in Deoghar temple on the card to begin the process

विश्व प्रसिद्ध बाबा मंदिर में पूजा-अर्चना करने आनेवाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसके लिए इंतजाम किए जा रहे हैं। इस क्रम में प्रवेश कार्ड के माध्यम से पूजा-अर्चना की व्यवस्था शुरू की गयी है। सफल होने पर यह व्यवस्था श्रावणी मेला में भी लागू की जाएगी। इससे श्रद्धालुओं को कम से कम समय के लिए लाइन में इंतजार करना होगा। पूजा करने वाले हर श्रद्धालु को प्रवेश कार्ड लेना अनिवार्य होगा, चाहे वह वीआइपी ही क्यों ना हो।

संस्कार मंडप से क्यू सिस्टम। त्रिलोक सिक्युरिटी सिस्टम इंडिया लिमिटेड नामक एजेंसी को प्रवेश कार्ड जारी करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। ट्रायल के बाद प्रबंधन बोर्ड में इस पर अंतिम फैसला होगा। बुधवार को मंदिर कैंपस के प्रशासनिक भवन में निबंधन काउंटर बनाया गया। निबंधन कराने वालों का संस्कार मंडप में वेरिफिकेशन हुआ उसके बाद क्यू सिस्टम के सहारे मंदिर प्रांगण होते मंदिर में प्रवेश कराया गया। बाबा पर जलार्पण के बाद निकास द्वार से खुशी-खुशी बाहर हो गए।

क्या है व्यवस्था -दो स्थान पर निबंधन काउंटर बनाया गया है। शिवगंगा से सटे बीएन झा संस्कृत पाठशाला एवं मंदिर परिसर स्थित प्रशासनिक भवन में एक-एक काउंटर है। यहां आकर हर एक श्रद्धालु चाहे वह स्थानीय हो या तीर्थयात्री, प्रवेश कार्ड बनवाना होगा। पहले दिन सुबह सात बजे से दिन के 12 बजे के बीच 2500 लोगों ने पूजा-अर्चना की।

इनमें तीन सौ ने संस्कृत पाठशाला जबकि शेष ने प्रशासनिक भवन के काउंटर से अपना प्रवेश कार्ड बनवाया। पहले दिन का जो अनुभव प्रशासनिक पदाधिकारियों का रहा है उसमें तीन से चार सेकंड में एक यात्री की तस्वीर वेब कैमरा से सिस्टम में फीड हो गयी। उसके बाद एक रंगीन कार्ड यात्री को थमा दिया गया। इस कार्ड को लेकर यात्री संस्कार मंडप के प्रथम तल पर गए जहां कार्ड का वेरिफिकेशन किया गया। एक क्लिक करते ही रजिस्टर्ड यात्री की तस्वीर मॉनीटर पर आ गयी जिसे ओके कर कतार में लगा दिया गया।

श्रवणी मेला से पूर्व दोनों सोमवार को पूरी मुस्तैदी के साथ एक अतिरिक्त काउंटर फूट ओवर के पास बनाने पर विचार किया गया है। तीनों प्वाइंट पर निबंधन के बाद संस्कार मंडप पर रिपोर्टिग होगी। 


Bhole Baba devotees ready BSF for security and convenience

श्री अमरनाथ यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए बीएसएफ पूरी तरह तैयार है। बीएसएफ इस बार श्रद्धालुओं को सुरक्षा कवच उपलब्ध कराने के साथ स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रदान करेगी। इस बीच, बीएसएफ महानिदेशक डीके पाठक ने बुधवार को बालटाल, पंचतरणी और पवित्र गुफा तक यात्रा प्रबंधों का जायजा लिया।

बीएसएफ प्रवक्ता ने बताया कि हमारी 25 कंपनियां बालटाल और पहलगाम के रास्ते पवित्र गुफा तक श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए तैनात रहेंगी। इसके अलावा 15 डॉग स्क्वाड भी होंगे और यात्रा मार्ग पर आतंकियों के किसी भी खतरे की आशंका को देखते हुए एक बम निरोधक दस्ता भी तैनात किया गया है। उन्होंने बताया कि हम अपनी तरफ से कोई भी चूक नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए बीएसएफ महानिदेशक डीके पाठक ने खुद सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लिया है। उन्होंने यात्रा ड्यूटी पर तैनात बीएसएफ के अधिकारियों व जवानों के साथ भी मुलाकात कर सुरक्षा प्रबंधों पर संतोष जताया है।

प्रवक्ता ने बताया कि इस बार यात्रा मार्ग पर पंचतरणी, महागणोश टॉप और पिस्सूटॉप के आस-पास हिमस्खलन के दौरान किसी भी आपात स्थिति में श्रद्धालुओं की मदद और बचाव के लिए मरूटेन व स्नो रेस्क्यू में विशेषज्ञ बीएसएफ के बचावकर्मियों का एक दल भी तैनात किया गया है। श्रद्धालुओं को यात्रा मार्ग पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के मद्देनजर 10 जगहों पर हमारे स्वास्थ्य शिविर भी हैं। इनमें बीएसएफ के डाक्टर व पैरामेडिकल कर्मी आवश्यक चिकित्सा उपकरणों व दवाओं के साथ यात्रा के दौरान 24 घंटे उपलब्ध रहेंगे।

Source: Spiritual Hindi Stories & Hindi Rashifal 2014

Bhagirathi will free up government

सरकार जलविद्युत परियोजनाओं के चलते अवरुद्ध हुई भागीरथी नदी को मुक्त कराने की योजना बना रही है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने बुधवार को कहा कि टिहरी बांध से छेड़छाड़ किए बगैर ही भागीरथी के प्रवाह को अविरल बनाने के लिए देश के जाने-माने वैज्ञानिकों से परामर्श किया जा रहा है।

पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज की ओर से यहां आयोजित नदी संरक्षण पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उमा ने कहा, 'धरासू से आगे भागीरथी रुक गई है जिसके चलते गंगाजल को शुद्धता देने वाला ब्रह्मद्रव गंगा तक नहीं पहुंच पाता। इसलिए इस बात की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं कि टिहरी बांध से छेड़छाड़ किए बगैर भागीरथी को एक अलग धारा बनाकर देवप्रयाग तक लाया जाए ताकि इसे गंगासागर तक पहुंचाया जा सके। सरकार जाने-माने वैज्ञानिकों से परामर्श कर रही है कि क्या टिहरी बांध को अलग छोड़कर कोई धारा बनाना संभव है। फिलहाल गंगा की धारा में सिर्फ अलकनंदा और मंदाकिनी का जल ही आ रहा है।'

उमा ने कहा, सरकार गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के साथ ही अन्य नदियों को भी निर्मल बनाने की ठोस योजना तैयार कर रही है। सचिवों का समूह भी इस पर काम कर रहा है। यमुना की सफाई के लिए प्रतिबद्धता जताते हुए उन्होंने कहा कि सरकार का इस पर पूरा ध्यान है। यमुना के किनारे वृक्षारोपण के जरिये हमने इस संबंध में अपनी प्रतिबद्धता जता दी है। उमा ने कहा कि गंगा की सफाई के लिए धन की कमी नहीं है। निजी क्षेत्र ने भी मदद की पेशकश की है। इसके अलावा अन्य देशों ने भी सहयोग का हाथ बढ़ाया है।

उमा ने स्पष्ट किया कि वह नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं की विरोधी नहीं हैं लेकिन यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि नदी किसी समय सूखे नहीं। उन्होंने बताया कि गंगा के संरक्षण पर विचार करने के लिए उनके मंत्रलय ने पांच जुलाई को एक बैठक बुलाई है जिसमें वैज्ञानिक, तकनीकी विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और गैर सरकारी संगठन भाग लेंगे।

Make secure better coordination Amarnath Yatra

जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी के राजेंद्रा ने बुधवार को कहा कि बेहतर समन्वय से राज्य पुलिस व सुरक्षाबल श्री अमरनाथ यात्रा को कामयाब बनाएंगे। इस दौरान हर खुफिया सूचना का आदान-प्रदान कर सुनिश्चित किया जाएगा कि यात्रा में कोई खलल न पड़े।

डीजीपी ने पहलगाम व बालटाल का दौरा कर अधिकारियों को कड़ी सर्तकता बरतने के निर्देश भी दिए। हर संवेदनशील इलाकों पर कड़ी नजर रखने के साथ उन्होंने खुफिया शाखा को भी सक्रिय बनाने पर जोर दिया। डीजीपी ने यात्रा की सुरक्षा को लेकर की गई फाइनल तैयारियों का भी जायजा लिया। उन्होंने यात्रा मार्ग के कई हिस्सों का दौरा कर अधिकारियों से सुरक्षा हालात के बारे में जानकारी भी ली। यात्रा मार्ग के अहम हिस्सों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। डीजीपी ने यात्रा के दौरान पूरी सर्तकता बरतने पर जोर देते हुए कहा कि सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए हर आने-जाने वाले की तलाशी ली जाए। साथ ही ध्यान रहे कि यात्रियों को कोई परेशानी न हो। डीजीपी के साथ यात्रा मार्गो का दौरा करने वालों में आइजी एजी मीर, डीआइजी विजय कुमार, एसएसपी समेत अन्य कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी शामिल रहे।

Source: Spiritual News in Hindi & Rashifal 2014

Keep in mind that not spilled jar of milk

शुकदेव को उनके पिता ने परामर्श दिया कि वे महराज जनक की शरण में जाकर दीक्षा ग्रहण करें। पिता के परामर्श से शुकदेव महराज जनक के दरबार जा पहुंचे और राजा जनक से दीक्षा देने का अनुरोध किया।

जनक ने शुकदेव की परीक्षा लेने से पहले उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके हाथ में दूध का कटोरा दिया और उनसे कहा कि इस कटोरे को हाथ में लेकर मिथिला नगर घूमकर आओ याद रखना कटोरे या कहें मर्तबान (मर्तबान चीनी मिट्टी का गोलाकार पात्र होता है प्राचीन समय इसका प्रयोग तरल पदार्थ, अचार, मुरब्बे तथा रसायन आदि रखने के लिए किया जाता था) से दूध की एक बूंद न छलके।

शुकदेव ने आज्ञा मान ली और दूध के कटोरे को बिना छलकाए मिथिला घूमकर वापस आ गए। यह देखकर महराज जनक बहुत खुश हुए और उन्होंने शुकदेव से पूछा कि उन्होंने मिथिला घूमते हुए क्या देखा?

शुकदेव बोले मैं मिथिला घूमने के बाद भी कुछ नहीं देख पाया क्यों कि मेरा पूरा ध्यान दूध के कटोरे पर था वह किसी तरह भी न छलक पाए। जनक ने कहा यही एकाग्रता योग है। इसे जीवन भर साधते रहो, यही मेरी दीक्षा है।

संक्षेप में

हम जो काम करते हैं उसे पूरे समर्पण भाव से करना चाहिए। जब हम किसी काम को एकाग्रचित रहते हुए किया जाता है तो उसका परिणाम भी सकारात्मक और चौंकाने वाला आता है।

Fountain enhances life by managing the business

पृथ्वी के पांचों तत्वों में संतुलन बनाना जीवन के विकास के लिए आवश्यक रहता है। फव्वारा पानी तत्व को बढ़ावा देता है। फव्वारा व्वसाय को भी बढ़ावा देता है।

व्यवसाय से धन प्राप्त होता है। फेंगशुई का फव्वारा मुख्यद्वार के पास रहना चाहिए। फव्वारे घरों में रहते हैं और कार्यालय में भी। पानी धन का प्रतीक होता है। पानी का बहना धन की बर्बादी है।

फव्वारे से हम कैसे अपनी जिंदगी को मैनेज कर सकते हैं। इसके लिए हमें इन बातों पर ग़ौर करने की जरुरत है।

    व्यक्ति जब तनाव में घर लौटता है तो उसको फव्वारा देखकर सुकून मिलता है। खुशी मिलती है। पानी की शुष्कता तनाव मुक्त कर देती है।

    कार्यालय में टेबिल पर फब्वारा कार्य से होने वाले तनाव को कम करता है, और इसके लिए शक्ति को बढ़ावा देता है।

    फव्वारा धन क्षेत्र में रखना चाहिए। यह हमेशा बहता रहना चाहिए। रुका हुआ फव्वारा धन की हानि करता है।

    यह मुख्य द्वार के बायीं और रहना चाहिए। मुख्य द्वार के सामने नहीं रहना चाहिए।

    फव्वारा में पानी ऊपर की ओर जाना चाहिए और यहां लाइट्स होनी चाहिए।

    फव्वारा गोल आकार का होना चाहिए। यह चतुर्भुज नहीं होना चाहिए। दरअसल चतुर्भुज के कोनों से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है।

    फव्वारा कभी भी खराब नहीं रहना चाहिए वरना धन के प्रवाह में कमी आ जाएगी।

Statue of goddess saraswati

छत्तीसगढ़ आदिकाल से ही शक्ति उपासना का केन्द्र रहा है। जहां एक तरफ तो छत्तीसगढ़ के दक्षिण भू-भाग में मां दंतेवश्वरी की पूजा की जाती है तो उत्तर के भूभाग में महामाया की पूजा आस्था का केंद्र है।

रायपुर से करीब 140 किलोमीटर दूर है रतनपुर। कहते हैं कि यहां कभी 1400 से भी ज्यादा तालाब थे। महाभारत काल में इस स्थान का नाम रत्नावली था और नालंदा विश्वविद्यालय जैसा शिक्षा का केन्द्र स्थापित था। किंवदंती है कि मां की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में मां सरस्वती की प्रतिमा है जो विलुप्त मानी जाती है।

दसवीं शताब्दी में कलचुरी राजा रत्नदेव ने राजधानी यहां लाए तो शक्तिरूपेण मां महामाया की यहां स्थापना की। जंगल और पहाड़ों के बीच स्थापित रतनपुर का महामाया मंदिर तंत्र और शक्ति आराधना का केन्द्र रहा है। नागर शैली में बने मंदिर का मण्डप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है।

भव्य गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। यहां सरस्वती की प्रतिमा विलुप्त रूप में मिलती है।

देवी सती का दाहिना स्कंध इस पवित्र धरा में में बना है, इसलिए इसे कौमारी शक्तिपीठ के रूप में भी स्वीकार किया जाता है इसके कारण से कुंवारी कन्याओं को मां के दर्शन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहां की शक्ति कुमारी और भैरव भगवान शिव है।

छत्तीसगढ़ में ज्वारे( जवारा) लगाकर माता सेवा की परंपरा है। देवी के रूप में गेहूं, जौं, की अराधना नौ दिन तक की जाती है। वहीं नौ दिन तक जलने वाली अखंड ज्योति से जीवन के अंधकार समाप्त हो जाते हैं। यहां 17 हजार से भी ज्यादा मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है।

Thursday 26 June 2014

Nokia unveils X2 Dual SIM with 4.3 inch display

Nokia X2 Dual SIM
According to sources, the Nokia X2 will be available in various colours - Glossy Black, Green, Orange, Dark Grey, White and Yellow. It will reportedly sport a translucent outer layer, reminiscent to the ones seen on Nokia's Asha range of handsets.


The smartphone comes with a 4.3-inch (800 x 480 pixels) clear black LCD display with a scratch resistant glass and is powered by 1.2 GHz dual-core Qualcomm Snapdragon 200 processor with Adreno 302. It is also supported by 1GB RAM. The handset has 4GB of onboard storage expandable up to 32GB.


Source: Tech News

Architecture office

ऑफिस और दुकान के लिए चुना गया भवन अगर वास्तु के अनुरूप हो तो आपके प्रयासों से ज्यादा बेहतर परिणाम व लाभ प्राप्त हो सकता है।

अगर दुकान या ऑफिस के लिए किसी भवन का चयन किया जा रहा है तो वास्तु के नियमों की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह सीधा आपके व्यापार या व्यवसाय के लाभ से जुड़ता है। यदि निर्माण वास्तु सम्मत है तो व्यवसाय या दफ्तर के कामकाज में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

जब हम वास्तु के अनुरूप दुकान या ऑफिस के लिए भवन का चयन करेंगे तो हमारे प्रयासों के ज्यादा बेहतर परिणाम भी प्राप्त हो सकेंगे।

यहां हम कुछ वास्तु प्रावधानों का उल्लेख कर रहे हैं जिनकी ओर ध्यान देकर अपने कामकाज को अधिक सहज और लाभदायक बना सकते हैं। कई बार अगर बहुत प्रयासों के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त होते हैं तो निराशाजनक स्थितियां भी बनती हैं और उनसे बचने में ये वास्तु उपाय मददगार साबित हो सकते हैं।

दुकान के लिए चुने गए भवन में पर्याप्त हवा और रोशनी की व्यवस्था होना चाहिए। चुने गए भवन के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को खाली रखें और यहां स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।

दुकान के भीतर बिजली का मीटर, स्विचबोर्ड, इन्वर्टनर जैसी चीजें आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में होना चाहिए।

दुकान, दफ्तर या आपकी फैक्ट्री के सामने द्वारवेध नहीं होना चाहिए। आशय यही है कि द्वार के सामने कोई खंभा या सीढ़ी आड़े नहीं आना चाहिए।

व्यवसाय के लिए चुने गए भवन में अगर सीढ़ियां बनवानी ही हों तो ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को छोड़कर बनवाना उचित रहता है।

माल का भंडारण या अन्य वस्तुओं को सहेजने के लिए दक्षिण, पश्चिम या नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) का उपयोग करें।

व्यवसाय के लिए चुने गए भवन का दरवाजा भीतर की ओर खुलना चाहिए। बाहर की ओर खुलने वाला दरवाजा व्यवसाय में आय से अधिक व्यय की स्थिति पैदा करता है।

व्यवसाय के लिए चुने गए भवन की दीवारों पर बहुत गहरे रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए और हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए।

व्यर्थ या अनुपयोगी सामान को अपनी टेबल पर न पड़ा रहने दें। अपनी टेबल को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखें।

अगर भवन का अगला भाग संकरा और पिछला भाग चौड़ा हो तो ऐसा भवन गौमुखी होता है और व्यवसाय की दृष्टि से लाभप्रद नहीं माना जाता है।

भवन का अगला हिस्सा चौड़ा और पिछला संकरा हो तो ऐसा भवन सिंहमुखी कहलाता है और व्यवसाय की दृष्टि से उपयुक्त माना गया है।

सोने चांदी का व्यवसाय करने वालों को दुकान में लाल और नारंगी रंग नहीं करवाना चाहिए क्योंकि ये रंग अग्नि के प्रतीक हैं और अग्नि धातु को नष्ट करती है।

धन वृद्धि के लिए तिजोरी की दिशा उत्तर में रखें क्योंकि यह धन के आराध्य देव कुबेर की दिशा है कोई भी व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोई सौदा करते हुए आप उत्तर दिशा की ओर मुख रखें। इससे व्यापार में काफी लाभ होता है।

Snake in the glory of sanchi and amravati


नागों का उल्लेख बौद्ध धर्मग्रंथो में भी बहुत अधिक मिलता है। बौद्ध धर्म में नागों को महात्मा बुद्ध का उपासक बताया गया है।


प्रयाग संग्रहालय में एक ऐसी मूर्ति, जिसमें वट वृक्ष के नीचे एक फन वाले नाग को बुद्ध की पादुकाओं की रक्षा करते हुए दिखाया गया है। बौद्ध ग्रंथों में दिशाओं के रक्षक के रूप में छायापति, कान्हागौतमाक्षी, विरूपाक्षी एवं ऐराव नामक इन चारों नागों को प्रतिष्ठित किया गया है।

कहते हैं कि महात्मा बुद्ध, एक बार जब उस समय के प्रसिद्ध पंडित उरुवेला कश्यप के आश्रम में गए और उसे अपना उपदेश देना चाहा, तो उसने इसलिए सुनने से इनकार कर दिया कि उसने एक बड़े भयानक नाग को काबू में कर रखा था, जिस पर बुद्ध का भी कोई वश नहीं चल सकता था।

इस पर महात्मा बुद्ध और नाग के बीच पूजा स्थल पर ही बल परीक्षण हुआ और महात्मा बुद्ध ने उस नाग को अपनी शक्ति से पराजित कर कमंडल में बंदी कर लिया।

उरुवेला कश्यप महात्मा बुद्ध की दिव्य शक्ति से बहुत प्रभावित हुआ और उनका अनुयायी बन गया। इस कथा का उल्लेख सांची, अमरावती और गंधर्व कला में कलात्मक रूप में आज भी देखा जा सकता है।

यह भी पढ़ेंः गरुड़ और नाग की शत्रुता की यह थी मुख्य वजह

सांची में महात्मा बुद्ध की उपस्थिति वैद्यशाला में पाषाण का आसन रखकर दर्शायी गई है। आसन पर पांच फणों वाला नाग दिखाया गया है। परंतु अमरावती पट्टी पर इस कथा में बुद्ध की उपस्थिति अग्निशाला के दो पदचिन्हों द्वारा दिखाई गई है। गंधर्व मूर्तिकला में बुद्ध को कश्यप बंधुओं के मध्य दिखाया गया है।

Boasting of king nhus

महाभारत में राजा नहुष का उल्लेख मिलता है। वह कुछ समय के लिए अपने पुण्य कर्मों के फलस्वरूप स्वर्ग के राजा बने। उस समय राजा नहुष को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

दरअसल ब्रह्महत्या के दोष से पीड़ित होकर देवराज इंद्र कहीं जाकर छिप गए। इसके बाद देवराज के पद पर महराज नहुष सुशोभित हुए।

जब राजा नहुष देवराज बने तो सभी देवताओं ने बड़ा मान दिया। वह मृत्युलोक के राजा थे। उन्होंने यश और पुण्य यहीं से कमाया था। इस कारण से उनकी बुद्धि स्थिर थी और वह पाप कर्मों से बचे रहे। उनके अच्छे दिन ज्यादा समय तक नहीं रहे। देवराज के पद को पाकर वह घमंड से चूर हो गए।

कहते हैं स्वर्ग लोक में सुख भोगना प्रधान होता है। ऐसे में नहुष भोग-विलास में लगे रहे। उनके मन में काम-वासना भी उत्पन्न हो गई।

एक दिन नहुष ने कहा कि देवराज की रानी शची मेरे पास अभी तक नहीं आईं। जब इंद्र में हूं तो उन्हें मेरे पास आना चाहिए। यह सुनकर शची को क्रोध आ गया और वह रोती हुई गुरु बृहस्पति के पास गईं। देवगुरु ने उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दिया।

जब यह बात नहुष को पता चली तो उन्हें क्रोध आ गया। अन्य देवों ने नहुष को समझाने का प्रयत्न किया कि शची पराई स्त्री हैं। तब नहुष बोले की इंद्र ने भी तो गौतम ऋर्षि की पत्नी अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया था। यह कहते हुए नहुष हठ कर बैठे की शची उनको ही चाहिए।

सभी देव इंद्राणी शची के पास पहुंचे और उन्हें नहुष की मंशा बताई। मंशा सुनकर शची देवगुरु के पास पहुंचीं। देवगुरु ने शची को बताया तुम घवराओ नहीं, नहुष का अंत निकट है।

काम-वासना से चूर नहुष ने जब शची को आता देखा तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। नहुष शची के आने से बहुत खुश था। यह देखकर शची घवरा गईं पर हिम्मत करते हुए बोलीं कि मेरा वरण करने के पहले आपको देवराज को ढूंढना पड़ेगा। यह कहकर वह देवगुरु के पास आ गईं। वहीं सारे देवता भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णुजी ने कहा कि इंद्र को मेरी आराधना करनी चाहिए।

उधर शची ने सती माता से अनुग्रह कर इंद्र के होने का पता लगा लिया। इंद्र परमाणु जितना छोटा रूप बनाकर मानसरोवर के एक कमल की नाल के रेशे से चिपके हुए तपस्या कर रहे थे।वह उन्हें देखकर रोने लगीं। इंद्र ने कहा कि तुम नहुष के पास जाओ और उससे कहना कि अगर वह पालकी में उसके पास आए और वह पालकी सप्तऋर्षि लाएं तो वह उसका वरण कर सकती है।

यह बात नहुष को सुनाई तो नहुष ने सप्तऋर्षियों को यह संदेशा भिजवाया। यह सुनकर सप्तऋर्षि क्रोधित हो गए। जब सप्तऋर्षि नहुष के पास तो नहुष बोले सर्प-सर्प ( प्रचीन काल में सर्प का मतलब जल्दी -जल्दी होता था) यह कहकर उन्हें पालकी उठाने को कहा। सर्प शब्द सुनते ही अगस्त्य ऋर्षि को क्रोध आ गया।

उन्होंने नहुष को शाप दिया कि नहुष तू मृत्युलोक में सर्प बनकर वहीं रहे। इस तरह उसके अहम का पतन हुआ। यह कहानी दरअसल महराज युधिष्ठिर ने द्रोपदी को सुनाई थी। जब दुर्योधन ने घमंड में चूर होकर द्रोपदी का चीर हरण किया था।


Vaastu flowers and archeology at home

फूलों से मानसिक असंतुलन को संतुलित किया जा सकता है क्यों कि यह प्रेम के प्रतीक होते हैं। फिर चाहे फूल कृत्रिम ही क्यों न हों? यह जीवन में सक्रियता को बढ़ावा देते हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होते हैं। फूल मन को सुगंध देते हैं इसके अलावा भी घर के वास्तु में भी सहायक हैं।

लाल रंग के फूल दक्षिण दिशा और पीले रंग के फूल दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। ऐसा होने पर व्यक्ति उत्साहित रहता है।

ताजे फूल शयन कक्ष में नहीं रखना चाहिए। सूखे फूलों को गुलदस्ते में से निकाल देना चाहिए। गुलदस्ते में फूल ताजे ही लगाएं। इसे दक्षिण में ही रखें। ऐसा करने से आपको सम्मान की प्राप्ति होती है।

परिवार के सदस्यों के बीच संबंध सुधारने के लिए बैंगनी रंग के , बैंगनी गुलदस्ते में अग्नि कोण (संबंध क्षेत्र) में रखना ठीक रहता है। ध्यान रखें फूल अगर सूख जाएं तो इन्हें निकाल कर ताजे फूलों का उपयोग ही करना चाहिए।

फूल पौधे के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। लकड़ी तत्व का अर्थ है। विकास, उन्नति, फैलाव आदि। इसलिए ताजे फूलों को व्यवसाय या कार्यालय में रखना पसंद करते हैं। इसके नकारात्मक ऊर्जा संतुलित रहती है।
विज्ञान कहता है कि ताजे फूल वातावरण को शुद्ध करते हैं। ये दरवाजे के पास रखे होना चाहिए। जिससे दरवाजे से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होती है।

बोनसाई पौधे भले ही खूबसूरत हों पर इन्हें घर में नहीं रखना चाहिए। अगर इन्हें रखते हैं तो घर के अंदर के विकास को रोक देते हैं। इसलिए इनका उपयोग वास्तु और फेंगशुई दोनों में ही वर्जित माना गया है।

Wednesday 25 June 2014

Here find the secret

एक बार ऋर्षि पिप्पलाद के पास कुछ शिष्य आए और उनसे कहा कि - 'हे गुरुदेव हमें जीवन और मृत्यु का रहस्य समझाने की कृपा करें।'

तब ऋर्षि ने कहा कि, 'जीवन के विषय में मैं थोड़ा बहुत बता सकता हूं, क्योंकि मैंने जीवन जिया है, जहां तक मृत्यु के विषय में बात की जाए तो मैं अभी मरा नहीं हूं।'

ऋर्षि ने गंभीरता से कहा कि ऐसे में यह मृत्यु के बारे में कैसे बता सकता हूं। जो मर चुका है उससे यह सवाल किया जाए तो वह इसे काफी अच्छे से इस बारे में बता पाएगा।

कुछ देर बाद चुप रहने के बाद के बाद ऋर्षि पिप्लाद ने कहा कि दूसरा विकल्प यह है कि खुद मर कर देखो। हालांकि तब दूसरे तुम्हारे अनुभव को नहीं जान पाएंगे। इसलिए मृत्यु के रहस्य से इसलिए अब तक पर्दा नहीं उठा है। जो जान लेता है वह यह बताने के लिए जिंदा नहीं रहता है।

संक्षेप में

कुछ रहस्य ऐसे होते है जिन्हें जानने के लिए कुछ कड़े फैसले लेने पड़ते हैं। इसलिए ऐसे रहस्यों को भूल जाना ही बेहतर है।


Get aspiration uneventful except fruit

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस संसार में दो प्रकार के लोग हैं जगत में- सकामी और निष्कामी। पहले वे, जो फल की आकांक्षा से उत्प्रेरित होकर कर्म में लीन होते हैं।

दूसरे वे जो सारी इच्छाओं को छोड़ वर्तमान के कर्म में लीन रहते हैं। सकामी को जब तक फल की आकांक्षा का तेल न मिले, तब तक उनके कर्म की ज्योति जलती नहीं। उनके कर्म की अग्नि को जरूरी है कि फल की आकांक्षा का ईंधन मिले।

ध्यान रखें, फल की आकांक्षा बड़ी गीली चीज है। क्योंकि सूखी चीज भविष्य में कभी नहीं होती, सूखी चीज सदा अतीत में होती है। भविष्य बहुत गीला है। गीली लकड़ी की तरह। मुड़ सकता है।

अतीत सूखा होता है। सूखी लकड़ी की तरह। मुड़ नहीं सकता। भविष्य की आकांक्षाओं को जो ईंधन बनाते हैं, अपने जीवन की कर्म-अग्नि में धुएं से भर जाते हैं। हाथ में फल नहीं लगता है, सिर्फ धुआं लगता है। आंखों में आंसू भर जाते हैं (दुख)। कुछ परिणाम नहीं हाथ लगता।

ये इस तरह के लोग हैं जो कर्म में इंच भर भी न चलेंगे, जब तक फल उनको न खींचे। फल ऐसे खींचता है, जैसे कोई पशु की गर्दन में रस्सी बांधकर खींचता है। 'पशु' संस्कृत का अदभुत शब्द है। उसका अर्थ है, जिसके गले में पाश बांधकर खींचा जाए। जिसे खींचने के लिए पाश बांधना पड़े, वह पशु।

इसलिए पुराने ज्ञानी ऐसे लोगों को पशु ही कहेंगे। जो भविष्य की आकांक्षा से बंधे हुए चलते हैं, वे पशु हैं। भविष्य के हाथ में वह रस्सी है। भविष्य खींचे, तो हम चलते हैं या अतीत धक्का दे, तो हम चलते हैं।

मनुष्य वह है, जो अतीत के धक्के को भी नहीं मानता और जो भविष्य की आकांक्षा को नहीं मानता। जो वर्तमान के कर्म में जीता है। जो अतीत के धक्के को भी स्वीकार नहीं करता और जो भविष्य के आकर्षण को भी स्वीकार नहीं करता। जो कहता है, मैं तो अभी, यह जो क्षण मिला है, इसमें जीऊंगा।

लेकिन यह जीना तभी संभव है, जब कोई अतीत और भविष्य को परमात्मा पर समर्पित कर दे। अन्यथा अतीत धक्के मारेगा, अन्यथा भविष्य खींचेगा।

मनुष्य भविष्य को और अतीत को बिना परमात्मा के सहारे बहुत मुश्किल से छोड़ पाएगा। परमात्मा को समर्पित करके आसान हो जाती है राह। वह उस पर छोड़ देता है। जो तेरी मर्जी होगी, कल वह हो जाएगा। अभी जो समय मुझे मिला है, वह मैं काम में लगा देता हूं।

और मेरा आनंद इतना ही है कि मैंने काम किया। फल से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। आनंद उसका कर्म बन जाता है। लेकिन यह तभी बन पाता है, जब कोई प्रभु पर समर्पित करने की साम‌र्थ्य रखता है। इसलिए कृष्ण कहते हैं- फल की आकांक्षा को छोड़कर, जो निष्काम होकर सारा जीवन प्रभु को समर्पित कर देता है, वही आनंद को प्राप्त होता है।

प्रार्थना भी हम मुफ्त में नहीं करते। हम कुछ पाना चाहते हैं। हाथ भी जोड़ते हैं परमात्मा को, तो शर्त होती है कि कुछ मिल जाए। जिसे कुछ नहीं चाहिए, वह मंदिर जाता नहीं। लेकिन ध्यान रहे, जब कोई कुछ मांगने मंदिर जाता है, तो मंदिर पहुंच ही नहीं पाता। मंदिर के द्वार पर ही जो निष्काम हो जाए, वही भीतर प्रवेश कर सकता है। आप कहेंगे, हम तो मंदिर में रोज प्रवेश करते हैं। आप मकान में प्रवेश करते हैं, मंदिर में नहीं।

मंदिर और मकान में बड़ा फर्क है। जिस मकान में भी आप निष्काम प्रवेश कर जाएं, वह मंदिर हो जाता है और मंदिर में भी सकाम प्रवेश कर जाएं, तो वह मकान हो जाता है। यह आप पर निर्भर करता है कि जहां आप प्रवेश कर रहे हैं, वह मंदिर है या मकान। जिस भूमि पर आप निष्काम होकर खड़े हो जाएं, वह तीर्थ हो जाती है और जिस भूमि पर आप सकाम होकर खड़े हो जाएं, वह पाप हो जाती है। भूमि पर निर्भर नहीं है यह। यह आप पर निर्भर है।

एक मित्र मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि मैं भी भजन-कीर्तन करना चाहता हूं, लेकिन मिलेगा क्या? मैंने उनसे कहा कि जब तक मिलने का विचार है, तब तक कीर्तन न कर पाओगे। क्योंकि मिलने के विचार से तो कीर्तन का कोई संबंध ही नहीं जुड़ता। कीर्तन का तो अर्थ ही यह है कि कुछ घड़ी हम कुछ भी नहीं पाना चाहते। कुछ क्षण के लिए हम ऐसे जीना चाहते हैं, जिसमें हमारा कुछ पाने का कोई प्रयोजन नहीं है।

जीवन मिला है, इसके आनंद में, इसके उत्सव में नाच रहे हैं। श्वास चल रही है, इसके आनंद-उत्सव में नाच रहे हैं। परमात्मा ने हमें जीवन के योग्य समझा, इसकी खुशी में नाच रहे हैं। कुछ पाने के लिए नहीं। धन्यवाद की तरह। एक आभार की तरह। कीर्तन एक आभार है, थैंक्स गिविंग। कुछ पाने के लिए नहीं, देने के लिए है।

कृष्ण की बात को भी ठीक से समझ लें। वे कहते हैं, दो तरह के लोग हैं। एक कामना से जीने वाले, सकामी। पहले पक्का कर लेंगे, फल क्या मिलेगा। प्रेम तक करने जाएंगे, तो पहले पक्का कर लेंगे, फल क्या मिलेगा! प्रार्थना करने जाएंगे, तो पहले पक्का कर लेंगे कि फल क्या मिलेगा। फल पहले, फिर कुछ कदम उठाएंगे। इन्हें फल कभी नहीं मिलेगा। मेहनत ये बहुत करेंगे। दौड़ेंगे बहुत, पहुंचेंगे कहीं भी नहीं।

मुझे याद है। मेरे गांव के पास वर्ष में कोई दो-तीन बार मेला लगा करता था। उस मेले में लकड़ी के घोड़ों की चकरी लगती थी। जितने भी लोग जाते, उस पर बैठते, पैसे खर्च करते, उस चकरी में गोल-गोल चक्कर खाते। बच्चे यह काम करते तो ठीक था, लेकिन मेरे स्कूल के शिक्षक भी उस पर बैठकर चक्कर खा रहे थे।

यह देखकर मैं बहुत हैरान हुआ। काफी चक्कर वे ले चुके, उनकी जेब के सब पैसे खाली हो गए थे। मैंने उनसे पूछा कि आप चले तो बहुत, लेकिन पहुंचे कहां? उन्होंने कहा, लकड़ी के घोड़े पर बैठकर गोल-गोल घूम रहे हैं। पहुंच कहीं भी नहीं रहे।

यह पूरा का पूरा संसार सकाम चक्कर है, कामनाओं का चक्कर। बस, इच्छा होती है, यह मिल जाएगा। चक्कर लगा लेते हैं, पर मिलता कभी कुछ नहीं। निष्काम व्यक्ति को ही फल मिलता है, लेकिन वह फल चाहता नहीं। वह कर्म को पूरा कर लेता है और परमात्मा पर छोड़ देता है।

Flowers and archeology at home

फूलों से मानसिक असंतुलन को संतुलित किया जा सकता है क्यों कि यह प्रेम के प्रतीक होते हैं। फिर चाहे फूल कृत्रिम ही क्यों न हों? यह जीवन में सक्रियता को बढ़ावा देते हैं।

यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होते हैं। फूल मन को सुगंध देते हैं इसके अलावा भी घर के वास्तु में भी सहायक हैं।

    लाल रंग के फूल दक्षिण दिशा और पीले रंग के फूल दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। ऐसा होने पर व्यक्ति उत्साहित रहता है।

    ताजे फूल शयन कक्ष में नहीं रखना चाहिए। सूखे फूलों को गुलदस्ते में से निकाल देना चाहिए। गुलदस्ते में फूल ताजे ही लगाएं। इसे दक्षिण में ही रखें। ऐसा करने से आपको सम्मान की प्राप्ति होती है।

    परिवार के सदस्यों के बीच संबंध सुधारने के लिए बैंगनी रंग के , बैंगनी गुलदस्ते में अग्नि कोण (संबंध क्षेत्र) में रखना ठीक रहता है। ध्यान रखें फूल अगर सूख जाएं तो इन्हें निकाल कर ताजे फूलों का उपयोग ही करना चाहिए।

    फूल पौधे के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। लकड़ी तत्व का अर्थ है। विकास, उन्नति, फैलाव आदि। इसलिए ताजे फूलों को व्यवसाय या कार्यालय में रखना पसंद करते हैं। इसके नकारात्मक ऊर्जा संतुलित रहती है।

    विज्ञान कहता है कि ताजे फूल वातावरण को शुद्ध करते हैं। ये दरवाजे के पास रखे होना चाहिए। जिससे दरवाजे से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होती है।

    बोनसाई पौधे भले ही खूबसूरत हों पर इन्हें घर में नहीं रखना चाहिए। अगर इन्हें रखते हैं तो घर के अंदर के विकास को रोक देते हैं। इसलिए इनका उपयोग वास्तु और फेंगशुई दोनों में ही वर्जित माना गया है।

Mole on the body

ज्योतिष शास्त्र के अभिन्‍न अंग सामुद्रिक शास्‍त्र में शरीर के विभिन्न अंगों का आपकी जिंदगी में होने वाले घटनाक्रम के बारे में बताया गया है।

शास्त्र के अनुसार शरीर के किसी भी अंग पर 'तिल' होना एक अलग संकेत देता है। स्त्रियों और पुरुषों में तिल का महत्व अलग-अलग होता है। इसके साथ ही आपकी आंखे, तलवे, नाभि के बारे में जानकर आप किसी भी स्त्री के बारे में पता सकते हैं।

स्त्रीः शरीर पर तिल

यदि किसी स्त्री के गाल पर तिल होता है, उसे अच्छा पति मिलता है वहीं जिस स्त्री के गाल के बांईं तरफ तिल हो तो ऐशो-आराम का सुख मिलता है। अगर मस्तक पर तिल हो तो हर जगह इज्जत मिलती है। नाक पर तिल हो तो वह महिला रूपवान होती है, पर बहुत ही घमंडी होती है वहीं कान पर तिल हो तो आभूषण पहनने का सुख मिलता है। आंख पर तिल हो तो पति की बहुत अधिक प्रिय होती है।

पुरुषः शरीर पर तिल

जिस पुरुष के सिर पर तिल होता है, वह हर जगह इज्जत पाता है वहीं अगर आंख पर तिल होता है तो वह उच्च पद पाता है। यदि मुख पर तिल होता है बहुत दौलत वाला होता है, वहीं जिसके गाल पर तिल हो तो उसे स्त्री सुख मिलता है। हाथ के पंजे पर तिल हो तो वह व्यक्ति दयालु रहता है। छाती की दाहिनी तरफ तिल हो तो अच्छी स्त्री मिलती है और अगर ऊपर के होंठ पर तिल हो तो धन की प्राप्ति होती है इसके साथ ही चारों तरफ इज्जत मिलती है। नीचे के होंठ पर तिल हो तो वह व्यक्ति कंजूस होता है। दाहिने कंधे पर तिल हो तो वह व्यक्ति कलाकार होता है।

अंगों से जानें स्त्री चरित्र

    महिलाओं की पलकें नीचे की ओर झुकी हों वह बेहद सौभाग्यशाली होती हैं।

    पैरों के तलवे मुलायम हों तो ऐसी महिलाएं सुख भोगने वाली होती हैं।

    यदि किसी स्त्री की कमर पतली हो तो सौभाग्यशाली और टेढ़ी-मेढ़ी, छोटी हो तो ऐसी महिलाएं तकलीफ देने वाली होती हैं।

    यदि महिला की नाभि अंदर की ओर गहरी और दाईं तरफ मुड़ी हो तो ऐसी महिलाएं काफी सौभाग्यशाली और सुख देने वाली मानी जाती हैं।

Source: Spiritual Hindi News & 2014 Ka Rashifal

Doctor religion

भगवान श्रीराम व रावण के बीच युद्ध चल रहा था। मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण घायल होकर भूमि पर मूर्छित अवस्था में पड़े हुए थे।

जब हनुमानजी को इस बात का पता चला कि लंका में रहने वाले सुषेण वैद्य मरते हुए व्यक्ति को मृत्यु के मुंह से निकाल लेने की अनूठी क्षमता रखते हैं।

हनुमानजी जी तुरंत वैद्य सुषेण के घर जा पहुंचे। सुषेण उस समय गहरी नींद में थे। हनुमान जी उन्हें उसी अवस्था में उठाकर रणभूमि में ले आए। सुषेण जब नींद से जागे तो उन्होंने भगवान श्रीराम को खड़े देखा।

वैद्य ने फिर मूर्छित लक्ष्मण जी को देखा। वो समझ गए कि उन्हें यहां चिकित्सा के लिए लाया गया है।

वह हाथ जोड़कर बोले प्रभु आप मेंरे राजा रावण के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि में आपके भाई लक्ष्मण की चिकित्सा करता हूं तो मुझे स्वामी द्रोह का पाप लगेगा।

प्रभु बोले कि ऐसा नहीं है हां पर लंका के नागरिक होने के चलते पर राजद्रोह का पाप लग सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कहा हनुमान तुरंत वैद्य को लंका छोड़कर आओ।

श्रीराम की विनयशीलता व मर्यादा भरे वचनों ने वैद्य सुषेण का विवेक जाग गया। वह बोले वैद्य होने के कारण हर रोगी का इलाज करना मेरा पहला कर्तव्य है।

इसके लिए मैं देशद्रोही का पाप भी सहन करने के लिए तैयार हूं। किंतु चिकित्सक के धर्म को नहीं छोड़ूंगा और उन्होंन लक्ष्मण जी की चिकित्सा शुरू कर दी।

Tuesday 24 June 2014

Apple suppliers to start making larger versions of iPhones next month

Apple
Apple is ramping up production of iPhones with 4.7 and 5.5-inch screen sizes, which may be shipped to retailers around September, the report said.

Apple launches new versions of the smartphone line that drives half its business around the fall of every year.

The industry has speculated for some time now that Apple intends to design and sell a device with a larger screen, to fend off Samsung phones with much bigger displays that have proven popular in Asia and elsewhere...

Apps bring speed reading into the digital age

Representational Picture
ReadMe, a new app for iPhones, lets readers control the pace of their reading from 50 to 1,000 words per minute.

“It’s about being able to read a book like 'Harry Potter' in an hour and a half and still have the full comprehension of it,” said Pierre DiAvisoo, who created the app and is based in Boras, Sweden.

Readers select an e-book in the app, which is available worldwide and costs USD 1.99. After opening the speed-reading technology it shows one word at a time. The app does not work e-books that have sharing restrictions.

Within just minutes, most readers can learn to double their reading speed to between 400 and 450 words per minute without losing comprehension, according to Spritz, the Boston-based company that created the speed-reading technology.

“Reading hasn’t really changed in thousands of years. Speed reading techniques are still focused on consuming texts in lines and reading left to right line-by-line,” said Frank Waldman, the chief executive of Spritz.

He added that the technology combines rapid serial visual presentation (RSVP), with eye research to present words at the ideal recognition point for quick understanding...

Karbonn launches Titanium S99 for Rs 5,990 in India

Karbonn launches Titanium S99 in India
The dual-SIM smartphone runs on Android KitKat Operating System and features a four- inch IPS display.

The device is powered with a 1.3 GHz quad-core processor and has 512MB RAM.

It sports a five-megapixel rear camera and a VGA front camera.

The internal storage capacity of this device is 4GB, which is expandable up to 32 GB via microSD card.

Karbonn Titanium S99 is powered by 1400 mAh battery.

Source: Tech News in Hindi

Unenviable final exam

एक बार गुरुकुल में तीन शिष्यों की विदाई का अवसर आया तो आचार्य बहुश्रुत ने कहा की सुबह मेरी कुटिया में आना। तुम्हारी अंतिम परीक्षा होगी। आचार्य बहुश्रुत ने रात्रि में कुटिया के मार्ग पर कांटे बिखेर दिए।

सुबह तीनों शिष्य अपने-अपने घर से गुरु के निवास की ओर चल पड़े। मार्ग पर कांटे थे। लेकिन शिष्य भी कमजोर नहीं थे। पहला शिष्य कांटों की चुभन के बावजूद कुटिया तक पहुंच गया। दूसरा शिष्य कांटो से बचकर आया। फिर भी एक कांटा तो चुभ ही गया। तीसरे शिष्य ने कांटे देखे तो कांटों की डालियों को घसीट कर दूर फेंक दिया।

फिर हाथ मुंह धोकर कुटिया तक तीनों गए। आचार्य बहुश्रुत तीनों की गतिविधियां गौर से देख रहे थे। तीसरा शिष्य ज्यों ही आया, त्यों ही उन्होंने कुटिया के द्वार खोल दिए और बोले- वत्स, तुम मेरी अंतिम परीक्षा में उतीर्ण हो गए हो।

गुरु ने कहा कि ज्ञान वही है जो व्यवहार में काम आए। तुम्हारा ज्ञान व्यावहारिक हो गया है। तुम संसार में रहोगे तो तुम्हें कांटे नहीं चुभेंगे और तुम दूसरों को भी चुभने नहीं दोगे। फिर पहले और दूसरे शिष्य की ओर देखकर बोले, तुम्हारी शिक्षा अभी अधूरी है।

संक्षेप में

ज्ञान वही है जो व्यावहारिक रूप से उपयोग में लिया जा सके। इसलिए सदैव हमें व्यावहारिकता को पहले पायदान में रखना चाहिए। कुछ समय और परिस्थितयां अपवाद स्वरूप बन सकती हैं।

I do not heron

महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा ग्रंथ हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं। महाभारत में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। कहते हैं एक बार पांडव जब वनवास पर थे तब उनके घर मार्कण्डेय मुनि आए।

इस दौरान युधिष्ठिर स्त्रियों के गुणों की चर्चा करते हुए बोले- 'स्त्रियों की सहनशीलता और सतीत्व से बढ़कर आश्चर्य की बात संसार में और क्या हो सकती है? बच्चे को जन्म देने से पहले स्त्री को कितना कष्ट उठाना पढ़ता है? पति के अत्याचार सहती है? बच्चे का लालन-पालन करती हैं? यह एक आश्चर्यजनक बात ही है।'

यह सुनकर मार्कण्डेय मुनि ने युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई। कथा कुछ इस तरह थी। एक गांव में कौशिक नाम का एक ब्रह्मण रहता था। वह ब्रह्मचर्य व्रत पर अटल था। एक दिन वह पेड़ की छांव में बैठा बात कर रहा था। उसके सर पर किसी पक्षी ने बीट कर दी। कौशिक ने ऊपर देखा तो एक बगुला बैठा हुआ था।

ब्रह्मण ने सोचा , इसी बगुले ने यह करतूत की है। उन्हें क्रोध आ गया। उनकी क्रोध भरी दृष्टि से उस बगुले को भस्म कर दिया। बगुले के मरे शरीर देखकर ब्रह्मण को पछतावा हुआ। कौशिक इस घटना के बाद से काफी दुखी हो गए कि मैनें एक निर्दोष पक्षी को मार दिया।

वह यह सोच ही रहे थे कि भिक्षा का समय हो गया। वह एक घर के बाहर खड़े थे और भिक्षा की याचना करते हुए आवाज देने लगे। जिस घर में गए थे। वहां का मुखिया आ गया। मुखिया की पत्नी ने अपने पति को खाना खिलाया। मुनि की तरफ ध्यान नहीं दिया।

कौशिक द्वार पर ही खड़े रहे जब वह महिला भिक्षा देने आई। उसने मुनि से क्षमा मांगी। मुनि काफी गुस्सा थे। मुनि ने कहा कि बहुत देर से मैं यहां था। तब वह महिला बोली। ब्रह्मण श्रेष्ठ पति की सेवा में लगी रही इसलिए देर हो गई।

कौशिक ने कहा तुम्हें अपनी पतिव्रता पर घमंड है। तब स्त्री ने कहा कि नाराज न हों मुनि, आपसे प्रार्थना है कि मुझे पेड़ वाला बुगुला समझने की गलती न कीजिएगा। आपका क्रोध पति की सेवा में रत सती का कुछ नही बिगाड़ सकता। मैं बगुला नहीं हूं।

स्त्री की बातें सुनकर मुनि चौंक गए। उन्हें बड़ा अचरज हुआ कि इस स्त्री को बगुले के बारे में कैसे पता चल गया। तब वह स्त्री बोली की मुनि आपने धर्म का मर्म न जाना। शायद आपको इस बात का भी पता नहीं कि क्रोध एक ऐसा शत्रु है जो मनुष्य के शरीर के अंदर रहते हुए उसका नाश कर देता है।

Eagle and serpent was mainly because of the hostility

अमूमन यह प्रश्न सदियों से उठता आ रहा है कि नागों की उत्पत्ति कैसे हुई। नाग और गरुड़ के बीच मतभेद सदियों से चला आ रहा है। दरअसल नागों के बारे में भागवत् पुराण में विस्तृत लेख मिलता है।

कहते हैं कि कश्यप ऋर्षि की दो पत्नियां थीं। एक का नाम बनिता और दूसरी पत्नी का नाम कद्रू था। एक बार कश्यप ने प्रसन्न होकर दोनों पत्नियों से वर मांगने को कहा। कद्रू ने एक हजार वीर नागों की माता होनें का वर मांगा और बनिता ने एक वर से दो पुत्र मांगे जो बाद में अरूण और गरुण के नाम से प्रसिद्ध हुए।

नागों की मां कद्रू को धरती का प्रतीक माना जाता है। गरुड़ और अरुण की मां बनिता को स्वर्ग की देवी माना जाता है।

एक दिन कश्यप दोनों पत्नियों में इस बात पर विवाद खड़ा हो गया कि सूर्य के अश्व श्यामवर्ण के हैं या श्वेत। बनिता ने उनका रंग श्वेत बताया, पर कद्रू नहीं मानीं। वह एक ही रट लगाए हुए थी कि अश्व श्याम वर्ण के हैं। बनिता ने आखिरी शर्त लगा दी कि अगर अश्वों का रंग श्वेत हुआ तो तुम और तुम्हारे पुत्र हमारे दास रहेगें। कद्रू ने स्वीकार कर लिया।

शाम हुई। जब कद्रू ने अपने पुत्रों से इसकी चर्चा की तब शेषनाग को छोड़कर शेष सभी पुत्रों ने कहा कि मां तुम चिंता मत करो। हम लोग जाकर अश्वों से लिपट जाएंगे जिससे वे दूर से श्यामवर्ण के दिखाई देने लगेंगे। यह बात सुनकर कद्रू प्रसन्न हो गई।

परंतु बाद में बनिता को यह भेद पता चल गया और तभी से गरुण और नागों की दुश्मनी चली आ रही है।

Facing troubles the mind wanders

कुछ छोटे लेकिन कारगर उपायों पर अमल करके मन की शांति तलाशी जा सकती है। बहुत सारी चुनौतियों के बीच, उलझनों और भटकावों से जूझते हुए मन अशांत रहने लगता है।

मन की शांति पाने के लिए कोशिश इसलिए भी जरूरी है कि मन शांत नहीं है तो मिलने वाली सफलताओं में भी आपका मन नहीं लगेगा। जब हमारा मन शांत होता है तो हम चीजों को सही रूप में देख पाते हैं। उनके नए अर्थ और आशय तलाश पाते हैं।

सहज और शांत मन के जरिए ही हम जीवन को जी सकते हैं। मन की शांति के लिए कुछ छोटे कदम मददगार साबित हो सकते हैं।

कुछ समय अकेले रहें

किसी शांत जगह पर कुछ देर अकेले बैठें और अपने बारे में सोचें। अपनी जिंदगी, अपने विश्वासों, अपनी इच्छाओं और अपनी भावनाओं को लेकर विचार करें। अपनी जिंदगी के सभी पक्षों के बारे में विचार से आपको अपने लिए सही दिशा तलाशने में मदद भी मिलेगी।

गुणों और दोषों पर विचार

अपने गुणों का विस्तार करने की दिशा में सोचें और अपनी कमियों को सुधारने की तरफ ध्यान दें। अगर आप अपनी कमियों को किसी तरह अपनी खासियत में बदल सकते हैं तो उस दिशा में भी सोचें। अपने गुणों और अपनी कमियों के बारे में जानकर आप अधिक बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।

नई चीजों के साथ जुड़ें

खुद को नई गतिविधियों और नई संस्कृति में ढालने का प्रयास करें। इस तरह आप अपने ईगो के बारे में भी जान पाएंगे और उसे संभालना भी सीखेंगे। अगर आप नए लोगों के बीच भी असहजता महूसस नहीं करेंगे तो आप अपने कठिन समय में भी शांति तलाश सकेंगे।

ध्यान की मदद लें

ध्यान के जरिए आप भटकते हुए मन को एकाग्र करने का सामर्थ्य जुटा सकेंगे। ध्यान आपको आंतरिक शांति और अपने बारे में जानने में मदद करता है। ध्यान के जरिए आप कठिनाइयों के हल तक पहुंच पाते हैं। यह भटकाव को खत्म करने और स्व पर केंद्रित करने में मदद करता है। ध्यान के जरिए हम अपने मानसिक सामर्थ्य का भी विस्तार करते हैं।

प्रेमभाव से जीवन को देखें

अपने आसपास की चीजों, प्रकृति और संसार को प्रेमभाव के साथ देखें। उनकी बहुत छोटी-छोटी विशेषताओं पर गौर करें। बिना किसी शर्त के अपने मित्रों के प्रति प्रेम व्यक्त करें। दुनिया की आलोचना करना बंद करें। दूसरों के दोषों को नहीं उनकी खासियत तलाशें। ऐसा करते ही आप पाएंगे कि अब कोई भी द्वंद्व नहीं है और जीवन शांत अवस्था में है।

दूसरों के प्रति आभारी रहें

अपनी जिंदगी, परिजनों, प्रियजनों, मित्रों और अन्य साथियों के प्रति आभारी रहें। वे किस तरह आपकी जिंदगी को खुशनुमा बनाते हैं उसके लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करें। यह आभार शब्दों में नहीं बल्कि आपके व्यवहार और आपके उनके प्रति प्रेम द्वारा व्यक्त होना चाहिए। इससे सच्ची शांति मिलेगी।

Monday 23 June 2014

Who was the father of sita

हिंदू धार्मिक ग्रंथ रामायण के मुख्य पात्र श्रीराम हैं और सीता उनकी धर्मपत्नी। अक्सर लोगों को यह प्रश्न जिज्ञासा पैदा करता है कि सीता आखिर किसकी पुत्री थीं। ज़ाहिर तौर पर इसका उत्तर आप खोज रहें होंगे। जिसका उत्तर यहां आप को मिल ही जाएगा।

सीता किसकी पुत्री थीं। इसे जानने के लिए पहले हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि उस काल में यानी श्रीराम जन्म के पहले का क्या घटित हो रहा था।

उस समय दशानन रावण तीनों लोकों पर न सिर्फ अधिकार प्राप्त करना चाहता था बल्कि अमर भी होना चाहता था। इसके लिए रावण ने कड़ी तपस्या की। रावण के तप से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और रावण को मनोकामनापूर्ति करने वाला वर दिया।

रावण ने ब्रह्माजी से वर मांगा कि- ' हे प्रभु! मुझे ऐसा वर दीजिए ताकि सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी मेरा वध न कर सके। इसके अतिरिक्त एक अन्य वर भी मांगता हूं।

जब मैं मोह के वशीभूत होकर अपनी ही कन्या से संसर्ग करने की प्रार्थना करूं और वह उसे अस्वीकार कर दे तभी मेरी मृत्यु हो। रावण को यह वरदान देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए।

रावण वरदान पाकर घमंड से चूर हो गया। एक दिन वह घूमते हुए दंडकारण्य पर्वत पर गया। उसने वहां रहने वाले सभी ऋर्षि-मुनियों से कहा कि वह विश्व विजेता है। आप मुझे आशीर्वाद दें। यह कहकर उसने ऋर्षियों के शरीर पर तीर चुभोकर बहुत सारा रक्त निकालकर एक कलश भर लिया।

उन ऋर्षियों में से एक ऋर्षि गत्समद भी थे। वह सौ पुत्रों के पिता थे। उन्हें एक पुत्री की बड़ी ही लालसा थी। उन्होंने भगवान से इच्छा जाहिर की कि उनके यहां लक्ष्मी जी कन्या रूप में आएं। इस तरह उन्होंने दूध को अभिमंत्रित किया और कुश के अग्र भाग से एक कलश में रख दिया। इसके बाद वह वन में तपस्या के लिए चले गए।

संयोग से रावण भी उसी दिन वहां रावण आया और उसी कलश में ऋर्षियों का रक्त भरकर उसे लंका साथ ले गया। राजमहल में पहुंचकर उसने अपनी पत्नी मंदोदरी से कहा कि इस कलश में विषैला रक्त भरा है। अतः तुम इसकी रक्षा करो। मैनें मुनियों पर विजय प्राप्त की है और उनके रक्त को इस कलश में भर दिया है।

इसके बाद रावण ने देवताओं, दानवों, यक्षों और गंधर्वों की स्त्रियों की कन्याओं का अपहरण करके ले आया और उनके साथ पर्वतों पर विचरण करने लगा। मंदोदरी ने जब रावण को अन्य स्त्रियों के साथ रमण करते देख उसे अच्छा नहीं लगा। वह मरने के बारे में सोचने लगी और मंदोदरी ने कलश में रखे ऋर्षि-मुनियों के रक्त को पी लिया।

रक्त को पीते ही मंदोदरी को गर्भ ठहर गया। वह गर्भवती हो चुकी थी। उसने सोचा मेरे पति मेरे पास नहीं है। ऐसे में जब उन्हें इस बात का पता चलेगा। तो वह क्या सोचेंगे की इस बीच मेरा किसी और पुरुष के साथ संसर्ग हो गया है।

ऐसा विचार करते हुए मंदोदरी तीर्थ यात्रा के बहाने कुरुक्षेत्र आ गई। वहां उसने गर्भ को निकालकर भूमि में दफना दिया। इसके बाद उसने सरस्वती नदी में स्नान किया और लंका वापस लौट गई।

कुछ समय बाद राजा जनक कुरुक्षेत्र गए और उन्होंने सोने के हल से उस भूमि को खोदा तो उन्हें एक कन्या मिली। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपना लिया।

हिंदू शास्त्रों में यह प्राचीन कहानी सीता के संबंध में मिलती है। सवाल फिर भी आज रहस्य बना हुआ है कि सीता आखिर किसकी पुत्री थीं। गत्समद ऋर्षि की, मंदोदरी की या फिर राजा जनक की?


Om word glory

देखा जाए तो हर धर्म में कोई न कोई प्रतीक चिह्न हुआ ही करता है। हिंदुओं में ऊँ को पवित्र अक्षर माना जाता है। हर धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत ऊँ के उच्चारण से किया जाता है।

ऊँ शब्द तीन अक्षरों अ, उ और म से मिलकर बना है। पर इसमें ऐसा क्या खास है कि इसे हिन्दुओं ने अपना पवित्र धार्मिक प्रतीक मान लिया है। असंख्य शब्दों और चिह्नों में से ऊँ और स्वास्तिक को ही क्यों चुना गया। ये सवाल महत्त है। जरा देखें ओम के उच्चारण से क्या घटित और परिवर्तित होता है।

    ऊँ की ध्वनि मानव शरीर के लिए प्रतिकूल डेसीबल की सभी ध्वनियों को वातावरण से निष्प्रभावी बना देती है।

    विभिन्न ग्रहों से आनेवाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणें ओम उच्चारित वातावरण में निष्प्रभावी हो जाती हैं।

    इसके उच्चारण से इंसान को वाक्य सिद्धि की प्राप्त होती है।

    चित्त एवं मन शांत एवं नियंत्रित हो जाते हैं।

    सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनों में भी ऊँ को महत्व प्राप्त है।

बौद्ध दर्शन में ऊँ का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। इस मंत्र के अनुसार, ऊँ को मणिपुर चक्र में अवस्थितमाना जाता है। यह चक्र दस दल वाले कमल के समान है। जैन दर्शन में भी ऊँ के महत्व को दर्शाया गया है। कबीर निर्गुण संत एवं कवि थे। उन्होंने भी ऊँ के महत्व को स्वीकारा और इस पर साखियां भी लिखीं।

गुरुनानक ने ऊँ के महत्व को प्रतिपादित करते हुए लिखा- ओम सतनाम कर्ता पुरुष निर्भोनिर्बेरअकालमूर्त। ऊँ सत्य नाम जपने वाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं अकाल-पुरुष के सदृश हो जाता है।

इस तरह ऊँ के महत्व को सभी संप्रदाय के धर्म-गुरुओं, उपासकों, चिंतकों ने प्रतिपादित किया है, क्योंकि यह एकाक्षरी मंत्र साधना में सरल है और फल प्रदान करने में सर्वश्रेष्ठ।

यह ब्रह्मांड का नाद है एवं मनुष्य के अंतर में स्थित ईश्वर का प्रतीक। किसी भी मंत्र के पहले ऊँ जाेडने से वह शक्ति संपन्न हो जाता है। एक बार ऊँ का जाप हजार बार किसी मंत्र के जाप से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

Spirituality-and-music

हमारे दर्शन में नाद को ब्रह्म माना गया है। नाद मतलब ध्वनि और ध्वनि मतलब संगीत क्योंकि शोर और आवाज़ के बीच बहुत फर्क है, फासला है। आवाज़ का मतलब ध्वनि से है। संगीत ध्वनि का ही नाजुक, खुशनुमा हिस्सा है।

वैसे तो हर धर्म में आराधना-उपासना की एक खास पद्धति हुआ करती है, लेकिन संगीत उसका एक अहम हिस्सा हुआ करता है। चाहे आप उसे कुछ भी कह लें ध्यान का साधना कह लें या फिर आराधना का तरीका, संगीत उसका हिस्सा होता है।

अमूमन मंदिरों में या फिर घरों में पूजा या फिर किसी भी दूसरी तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में इन सारे वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है। जिन घरों में मंदिर हैं, उन घरों में गरूड़जी और मंजीरा मंदिरों का एक अहम हिस्सा हुआ करते हैं। संगीत हमारे जीवन की अंतर्धारा है। हर अवसर पर शगुन, शुभ और उत्सव की अभिव्यक्ति संगीत के माध्यम से की जाती है।

    जप : यदि नाम ही जपा जा रहा है तो उसे भी सस्वर किया जाता है।

    मंत्रजाप : मंत्रों का जाप तो सस्वर होता ही है। एक विशेष लय में मंत्रजाप थोड़ी देर में सुनने वाले और जपने वालों को स्थिर मनोदशा में ले जाने में कामयाब हुआ करता है।

    भजन : ईश्वर की भक्ति में भजन गाना एक तरह से ध्यान में जाने का ही उपक्रम है। भक्ति में लीन होने का खुद में डूब जाने का या फिर यूं कह लें कि सबसे अलग हो जाने में भजन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

    आरती : सस्वर आरती... पूजा के समापन की परंपरा है। ये भी संगीत का ही एक रूप है। आरती पूजा के पूर्णाहुति मानी जानी चाहिए। औपचारिक तौर पर पूजा का समापन।

    सामूहिक कीर्तन : भजन से आगे बढ़कर कीर्तन भी हमारे यहां भक्ति का एक रूप है। जब समूह में भजन गाए जाते हैं, वाद्य-यंत्रों के साथ तो वह कीर्तन का रूप ले लेता है। ये सामूहिक ध्यान का सर्वोत्तम पद्धति है।

ये तो सारे धार्मिक अनुष्ठानों के हिस्से हैं, लेकिन हमारी परंपरा और संस्कृति का संगीत से गहरा संबंध है। जीवन के हर हिस्से में संगीत उत्साह और उत्सव की अभिव्यक्ति संगीत के माध्यम से हुआ करती है।

शायद दुनिया भर में हर कहीं संगीत भीतर के उत्साह का व्यक्त करने का माध्यम हुआ करता है। किस तरह हमारे यहां हर शुभ अवसर के लिए खास तरह के संगीत की व्यवस्था है, ये सिद्ध करता है कि संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह आत्मा का परिष्कार है।

    गणपति : शादी के शगुन गीतों की शुरुआत गणपति से हुआ करता है। हमारे यहां गणपति की स्तुति से हर शुभ अवसर की शुरुआत की जाती है। तो शादी के मौके पर गणपति गाए जाने की परंपरा शुभ अवसर पर उन्हें आमंत्रित करना है।

    बन्ना-बन्नी : शादी के संगीत का अहम हिस्सा रहा है। अब चाहे इसकी जगह महिला संगीत ने ले ली है, लेकिन बन्नाा-बन्नाी गाया जाना भी विवाह उत्सव के उत्साह की अभिव्यक्ति है।

    मेंहदी : मेंहदी गीत भी विवाह-संगीत की एक परंपरा है।

    विदाई : विदाई गीत एक किस्म के कैथार्सिस का तरीका है। बेटी की विदाई पर चूंकि बेटी सहित परिजनों का मन भरा हुआ होता है, ऐसे में माहौल को हल्का करने के लिए और उस विछोह को व्यक्त करने के लिए विदाई गीत गाए जाते हैं। विदाई गीतों में खासतौर पर बेटी को नए घर में रहने, इस घर में रहने की यादें और उसके साथ के दिनों में प्रेम और स्मृति की अभिव्यक्ति की जाती है।

हमारे जीवन के हर हिस्से में संगीत का शुमार यूं ही नहीं है। असल में संगीत उस नाद ब्रह्म का हिस्सा है, जिसे हमने एक विधा के तौर पर ईजाद किया है।

संगीत का लक्ष्य सिर्फ मनोरंजन नहीं है, ये ध्यान की एक विधि है, अध्यात्म के चरम पर पहुंचने और आनंद की अनुभूति का साधन है... यहां से परमात्मा के अहसास का रास्ता निकलता है।